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________________ कर्ता : वज्रसेन नमेव । पहिलउँ रिसह - जिणिदु भवियहु ! निसुणहु रोल धरेवि । Jain Educationa International भर हे सर-बाहुबलि-घोर बाहुबलि - केरउ विजउ ॥ १ सयलह पुत्तह राणिव देवि । भरहेसरु निय - पाटि ठवेवि । रिससरु संजमि थियउ ॥२ रचना - समय : ११६६ के लगभग वरि जाउ दिणि दिणि उपवासु । मूनिहि थाकउ वरिस - सहासु । व रिससरि तपु कियउ ॥ ३ तो जुगादेव सु-पहाणु I उप्पन्नं वर - केवल-ना 1 भरसर रिद्धि नियंती तो चक्की भरसरु चक्क - रयणु भरहेसरह ||४ जिण वंदण जाइ । अंगि न माइ । तो सेणावइ अज्जिउ मरुदेवी केवल लहए ॥५ दिगविजउ करेवि । राणा मेले वि 1 अवझा-नयरिहि आइयउ ||६ कहियं देव । आउह- सालह एव 1 चक्क - रयणु नवि पइसरइ' ॥ ७ भरहु भणइ 'कु न मन्नइ आण ?' 'देव ! बंधु सवि खंध-सवाण । बाहुबलि पुण आगलउ' ॥८ 'बंधु बाहु ! तुम्हि आजु-इँ आजु । करउ आण, कय छंडउ राजु' । भरहिं दूय पठावियउ ॥९ मूल प्रति के अशुद्ध पाठः १. ३. बहुवलि. १ दिणि २. २.४. ३ चक्कु. १. २. अंगी. ६. १. थक्की दिगुविजउ करेइ. For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003831
Book TitlePrachin Gurjar Kavya Sanchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Agarchand Nahta
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1975
Total Pages186
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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