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प्राचीन गुर्जर काव्य संचय
अहह पेच्छह सीलस्स माहप्पयं राम-भज्जाय अइ अच्छरिय कप्पयं ।४७ पाय फरिसेवि फिडेवि जं पावओ नीरु लहु लहइ रोगग्गि-उल्हावओ।४८ रोग-जल-जलण-विस-भूय-गह-मग्गया सीह-करि-सप्प-चोरारि-उवसग्गया। ४९ मारि-डमरारि-भय-करण जे देसई सीलवंताण नामेण ते नासई ।५० । आउ अह-दीह रोगेहि परिचत्त[५२०B]या रूव-लावन्न-सोहग्ग-बल-जुत्तया ।५१ जं च अन्नं पि अभिराम जगि गजई सीलवंताण तं सयल संपज्जई ॥५२ पणय-नीसेस-खयरिंद-नर-सामिओ निययनू(?)बलिण इंदो वि जिणि नामिओ। अन्न-रमणीय कय-चित्त लंकावई करवि कुल-नासु सो पत्तु अहर-गइ ।५४ नरय-भवि अगणि-पुत्तलिय-परिरंभणं तिरिय-जोणीसु संढत्त-वह-बंधणं ५५ मणुय-जम्मम्मि दोहग्ग-छवि-छेयणं मणुय-जम्मम्मि सरइब्भ-चंचलतरे गिरि-नई-वेग-सरिसम्मि जुव्वण-भरे ।५७ असुय-तुच्छेसु विलएसु नर लुद्धया मुक्ख-सुक्खाइ हारंति ही मुद्धया ॥५८ सुहम-नव-लक्ख-जीवाण-संहारणं देह-धण-कित्ति-धम्माण खय-कारणं ।५९ सयल-दुह-मूल-महुबिंदु-सम-सुक्खयं विसय-सुह चयहु अहिलसउ जइ मुक्खयां६० विसय-विस-सील-अमियाण फल वुझिओ सील-भट्ठाण संसग्गिम वि उज्झिओ ।६१ सुद्ध सीलम्मि ठावेह अप्पाणयं जेम अचिरेण पावेह निव्वाणयं ॥६२ इय सीलह संधी अइय सुबंधी जयसेहर-सूरि-सीस-कय । भवियह निसुणेविणु हियइ धरेविणु सील-धम्मि उज्जम करहो* ॥६३
५३. १. खयरंद, सामीउ. ५५. १. पुत्तलीय ६०. २. जय. ६३. १. मई. * अन्तः सीलसंधि समाप्तः.
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