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सील-संधि [कर्ताः जयशेखरसूरि-शिष्य रचना-समयः १५वीं शताब्दी लेखन-समयः ई.स.१४३७]
सिरि-नेमि-जिणिंदह पणय-सुरिंदह पय-पंकय समरेवि मणि । वम्मह-उरि-कीलह कय-सुह-मीलह सीलह संघथ (?) करिस हउँ ॥१
[१] जे सील धरइ नर निरईयार तव-संजम-नियमह मज्झि सारु ।२ इह जम्मवि सिरि-कितिहि सणाहु विप्फुरइ समीहिय सिद्धि ताह ।३ दीहाउ महा-यस इद्धिमंत अहमिंद महा-बल तेयवंत ।४ । अक्खंड सील धरि भविय सत्त सुर-सुक्ख लहइ पर-लोइ पत्त ।५ तित्थयर-चक्कि-बल-वासुदेव सुर-खयर-नरिंदिहि विहिय-सेव ।६ अन्ने वि जे तिहुयण-सिरि-निहाण ते सील कप्प-तरु-कुसुम जाणि १७ भुंजेविणु सुर-नर-खयर भोग आजम्म-काल-गय-रोग-सोग ।८ अक्खंड-सील-सोहिय-सरीर निवाणि]-सुक्ख लहु लहइ धीर ।९ सो दाण सव्व-किरिया-पहाण तव स ज्जि सयल-सुक्खह निहाण ।१० सा भावण सिव-साहण-समत्थ अखंड धरिज्जइ सील जेन्थ ।११ महिलउ जाउ परिरक्खियाउ भज्जाउ बंभ-वय-धारियाउ ।१२ ताउ व्व जंति सुर-लोय चंगि जिण भासइ पन्नवणा-उवंगि ।१३ जं [५१९A] कलि-उप्पायण जण-संतावण नारय-पमुह वि सिद्धि गय। निम्मूलिय-हीलह निम्मल-सीलह, तं पयाव पसरइ पयड्ड ॥१४
निविड-सीलंग-सन्नाह सन्नद्धया रमणि-जण-नयण-वाणेहि जि न विद्धया।१५ चत्त-गिह-वास सिव-सुक्ख-संपइ-कए तेसि पणमामि भत्तीइ पय-पंकए ॥१६ तिव्व-तवचरण-तित्थ-वय-रस-पोसिणा वहु वि दीसंति लोयम्मि सु-महेसिणा ।१७ गरुय-सीलंग-भर-वहण-कय-निच्छया विरल किवि अस्थि पुण मुक्ख-तल्लिच्छया ॥१८ जे वियाणति धम्मस्स तत्तं जणा सग्ग-अपवग्ग-संपत्ति-कय-निय-मणा ।१९ रमणि-जण-रूव-लावन्न-वक्खित्तया ते वि भव-भीय बंमम्मि चल-चित्तया ॥२० कोडि-सिल मि इ बाहाहि जे धारही बलिण दप्पिट्ट नर खयर वसिकारिही ।२१
१. ६ २ निरिदिहि. ७. २ कप्पु. १०. २ °सुखह. १४. ४. निम्मूलीय: १५. १ मिवडु. १६. २ भत्तीय पई. १७. १ मिच्छ.:
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