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नमयासुदरि-संधि
अक्खुहिउ खमावइ सा वि साहु मुणि कहिअ धम्मि तसु बोहि-लाहु ।२० सा देवि चविवि सहदेव-धूअ हुय नमया-सुंदरि गुणिहि गरुय ।२१ पडिकूलिहि तसु हुउ पइ-विओगु अणुकूलि सील-खोहण-पओगु' ।२२ इय निअ-भवु निसुणि[वि भव-विरत्त चारित्तु लेइ नम्मय पवित्त ।२३ इक्कारसंग-धर-गणहरेण सा ठविय महत्तर-पदि कमेण ।२४ फुड-अवहि-नाण-जुये सह मुणिंदि विहरंत पत्त पुरि कूववंदि १२५ कउ तीइ महेसरु निव्वियप्पु सर-लक्खणेण निंदेइ अप्पु ।२६ 'जाणिज्जइ सत्थ-पमाणि सव्वु तउ नमया जाणिउ पुरिस-रूवु २७ मई दुट्ठि निकिट्ठि सु-सील चत्त कंता तसु पावह दिक्ख जुत्त' ।२८ नम्मयमुवलक्खिवि चरणु लेइ' रिसिदत्त-सहिउ सो तवु तवेइ ।२९ आराहिवि अणसणु सग्गि जंति तिन्नि वि अणुवमु सुहु अणुहवंति ।३०
॥ घत्ता ॥ कल्लाणह कुलहर होअउ जय-कर नमयासुंदरि-संधि वर । अब्भत्थणि संघह रइअ अणग्यह पढत-सुणंतह उदय-कर ॥३१
सरिओं वि सील-जुन्हा जीसे सुकयामएण तिय-लोअं । सिंचइ बीइंदु-कल व नम्मया जयइ अ-कलंका ॥
तेरस-सय-अठवीसे वरिसे सिरि-जिणपहु-प्पसाएण। एसा संधी विहिया जिणिंद-वयणाणुसारेणं ॥
१ ज्य. २ कूविचंदि. ३ अणुसणु. ४ रईअ. ५ सिरियातीउ. ६ पसाएण.
अन्तः ॥ श्रीनर्मदासुंदरीमहासतीसंधि समाप्ता ॥
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