________________
केसीगोयम-संधि
पूछइ केसी तरीय-विसेसू अकय-दुकय जल-संगह-देहू आसवि भव-संवरि सिव थाए
बोलइ गोयम 'कहउँ असेसू ॥१०३ भव-जल-तरण-तरी-सम एहू ॥१०४ कंडरीक-पुंडरीकहँ न्याए' ॥१०५ 'साहु साहु गोयम' ॥१०६-१०७ तो गोयम वुच्चइ० ॥१०८
अंधयार घण घोर भयंकर गोयम पूरि रहिउ भवणतर ॥१०९ अच्छइ कोइ जु तिमर हरेसिइ महि-मंडलि उज्जोय करेसिइ' ॥११० 'ऊगिउ अच्छइ एक जु भाणू सो करिसिइ उज्जोय पहाणूं' ॥१११ केसी भाणु मुणेवा चाहइ तक्खणि गोयम-गुरु तं साहइ ॥११२ 'वद्धमाण-जिणि निम्मल-नाणू उदयवंत जाणेवउ भायूँ ॥११३ महु मणि मिच्छा-तिमिर हरंतउ वीर-तरणि अवयरिउ तुरंतउ' ॥११४
'साहु साहु गोयम' ॥११५-११६ तो गोयम वुच्चइ० ॥११७
'जम्मण-मरण-रोगि जग पीडिउ दीसइ दुक्ख-निरंतरि भीडिउ ॥११८ गोयम अच्छइ कोइ पएसो जत्थ नही जर-मरण-पवेसो' ॥११९ 'ठाण एग छइ उत्तिम लोए जहि जर-मरण-पवेस न होए ॥१२० केसी जंपइ 'किसउ सु ठाणूं' . गोयम तासु करइ वक्खायूँ ॥१२१ 'सिद्धि-सिलोवरि अस्थि पहाणू मुक्ख एक अजरामर ठाणू ॥१२२ साचइ जम्मण-मरण जु बीहइ सिवकुमार जिम सो सिवु ईहई' ॥१२३ 'साहु साहु गोयम तुह पन्ना सयल भ्रंति मह चित्तह छिन्ना ॥१२४ इम भणि कीयउ कम्म-निवेसू केसि लियइ गोयम-वय-वेसू ॥१२५
इम करवि विचारू संजम-भारू पालेविणु जे मुक्खि गय । ते गोयम-केसी चित्ति निवेसी झायहु भवियाणंदमय ॥१२६
अंत : इति केसीगोयमसंधिः समाप्ता ॥ पं० श्रीश्रीश्रीहेमसिहेन मुनिवराणं शिष्येणि लिषिते ॥ ८५२२९३१०४८१०३२२१०५४३२२२८१२२८१६२७५९२७२ सुभं भवतुं । कल्याणमस्तुं ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org