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प्राचीन गुर्जर काव्य संचय
गोयम तीणि तुरंगमि चडियउ तुहु कहि किम उम्मग्गि न पडियउ' ॥७४ 'मइँ सु तुरंगम दमि वसि कीधउ तो हउँ तीणि उमागि न लीधउ' ॥७५ 'आसु किस' केसी पूछेई तउ तसु गोयम ऊतर देई ॥७६ 'चंचल चित्त तुरंगम जाणउ सो-इ जि एकु दमी वसि आणउ ॥७७ राम दमी मनु तिम वसि कीधउ जिम सीतेंद्रि उमागि न लीधउ' ॥७८
'साहु साहु गोयम' ॥७९-८० 'तो गोयम वुच्चइ.' ॥८१
'दीसइँ माग अणेग अतुल्ला जीहि जीव भव भमडहि भुल्ला ॥८२ निय निय मागु भलउ सवि बोलइँ गोयम किम तुम्ह तेहि न डोलइँ ॥ 'माग कुमाग सवे हूँ जाणउँ मेल्हि कु-माग सुमाग वखाणउँ' ॥८४ 'मागु किसिउ' केसी इम जंपइ तं सुणि गोयम एम पयंपइ ॥८५ 'मागु जिसउ जिणवरि जि कहिजइ अवर कु-माग न तेहि गमिज्जइ ॥८६ सुलसा इह मनु मागि जि लागउँ अंबड-वयणिहि किमइ न भागउँ ॥८७
'साहु साहु गोयम' ॥८८-८९ तो गोयम वुच्चइ० ॥९०
'जे नर-नारी नीरि निमज्जहि लोल-वेल-कल्लोल हणिजहि ॥९१ तीह जु होइ सरणागय-ताणू गोयम को अच्छइ सो ठाणूं' ॥९२ 'अंतर-दीव पवर छइ एगो जत्थ न पहवइ सो जल-वेगो' ॥९३ केसि कहइ 'जल-दीवु ति कइसा' गोयम पभणइ पयडउ जइसा ॥९४ 'भव सायर जल पातक कम्मू अंतर-दीव-सरीखउ धम्मू ॥९५ दृढप्रहारि किउ पाप पयंडू धम्म-पहाविइँ किय सय-खंडू' ॥९६
'साहु साहु गोयम० ॥९७-९८ तो गोयम वुच्चइ० ॥९९
१२ 'बेडुलडी बहुविह पूरिज्जइ एक तरहि एक जलहि निमज्जइ ॥१००
जिणि सायरु निश्चइँ लंघीजइ' ॥१०१ 'जा निच्छिदि नीरि न भरीजइ तिणि बेडी जल-रासि तरीजइ' ॥१०२
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