SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्ता : जिनप्रभसूरि २. नमयासुंदरि संधि पण मिवि पणइंदह वीर-जिणिंदह सिरि-नमया - सुंदर अज्ज वि जस्स पहावो वियलिय पावो य अखलिय-पयावो । तं वज्रमाण-तित्थं नंदउ भव- जलहि-बोहित्थं ॥ १ Jain Educationa International गुण-जल- सुरसरि सिरि-वज्रमाणु-पुरु अत्थि नयरु तहि वसइ सु-सावगु उसहसेणु तब्भज्ज - वीरमइ - कुक्खि-जाय सहदेव - वीरदासाभिहाण नहु देइ सिट्टि मिच्छत्तिआणे अह कूववंद - नयरागएण वणिउत्त-रुद्ददत्ताभिहेण अम्मा-पईहि परिवज्जिआइ पुरि वद्धमाणि सहदेव-घरिणि उपन्नु मणो[र]हु पिअयमेण गब्भाणुभावि तहि ँ रहिउँ चित्तु तहि ँ कारिउ जिण-चेइउँ पवित्तु अह नमयासुंदरि सुंदरीइ लावन्न-रूव-निरुपम-कलाहि पिअ - माइ- पमुहु सयलु वि कुडुंबु उच्छा हिउ रिसिदत्ताइ पुत्तु आवज्जिर्ड गुणिहिं सु-सावयत्तु नमया परिणीय महेसरेण रिसिदत्त ती कय एग-चित रचना - समय : ई. सं. १२७२ चरण-कमल सिव-लच्छि कुलु । किंपि थुणिवि लिउँ जम्म-फलु ॥ [१] तहि संपइ नरवइ धम्म - पवरु | १ अणुदिणु जसु मणि जिणनाह - वयणु |२ दो पवर पुत्त तह इक्क धूअ १३ रिसिदत्त पुत्ति गुण-गण- पहाण 18 रिसिदत्त इब्भ- पुत्ताइयाण | ५ परिणीअ कवड वर - सावएण । ६ पित्त चत्त-धम्मा कमेण ॥७ उ पुत्तु महेसरदत्तु ताइ ॥८ सुंदरि नमया - नइ - न्हाण - करणि । ९ गन्तूण तत्थ पूरिउँ कमेण ॥१० सहदेविहि ँ नमयापुरुस - वित्तु । ११ मिच्छत्त-राय-जयपत्तु पत्तु । १२ धूआ पसूअ गुण-सुंदरीइ |१३ तहि वज्रइ नमया निम्मलाहि । १४ आणाविउ तहि पुरि निम्बिलम्बु । १५ ववसाइ महेसरदत्तु पत्तु ॥१६ पडवज्जिउ रंजिउ ताहँ चित्तु । १७ तउ कूववंदि पहुतउ महेण । १८ जिणनाह - धम्मि सासुरय- जुत्त ।१९ अशुद्ध मूल-पाठः १ - अक्ख लिय. २. ६. रहीउ. ७. चेईउ. ८. भवज्जीउ ९. वज्जीउ. १०. चित्तु. मिच्छतीआण. ३. घरणि. ४. उपन्नु. ५. पुरीउ. For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003831
Book TitlePrachin Gurjar Kavya Sanchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Agarchand Nahta
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1975
Total Pages186
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy