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प्राचीन गुर्जर काव्य संचय
'च्यारि महव्वय पासि पयासिय तेह जि पंच वीर-जिण-भासिय ॥१९ काज तु एक मुक्ख साहेवउँ किणि कारणि बिहुँ मग्गि वहेवउँ ॥२० 'रिसह-कालि जिय ऋजु-जड हुंता मज्झिम पुणि रिजु-पन्न महंता ॥२१ संपइ ते वंकुड-जड गणियइ तिणि कारणि बिहुँ परि वय भणियइ । ऋजु-जड धम्म दुहेलउ लक्खहि वंकुड-जड दुख-लक्खहि रक्खहि ॥२३ मज्झिम-कालि जीव ऋजु-पन्ना सुखि लक्खहि सुखि रक्खहि धन्ना' ॥ 'साहु साहु गोयम तुह पन्ना एह भंति मह चित्तह छिन्ना ॥२५ अन्न-वि एग अस्थि संदेहू तं पुण गोयम मज्झ कहेहू' ॥२६
तो गोयम वुच्चइ 'जं तुम्ह रुच्चइ तं पुच्छेह भदंत लहू' । तं निसुणि महेसी पभणइ केसी विणय-धम्म पयडत बहू ॥२७
'एक ज इच्छा-वेस वहिज्जइ
चरण चरंतह नत्थि विसेसू 'जेह तणउँ मन निश्चल होई जे चल-चित्त कया-वि चलंते निश्चल मनि भरहेसर-राओ पसन्नचंद जो झाणहु चलियउ
अवर पमाणोपेतु कहिज्जइ ।।२८ किणि कारणि किउ बिहुँ परि वेसू' ॥२९ तिह मनि वेस विसेस न कोई ॥३० ते बिहुँ वेसि विसेस वि लंते ॥३१ विणु मुणि-वेसहँ केवलि जाओ ॥३२
वेस-विसेस देखि सो वलियउ' ॥३३ 'साहु साहु गोयम०' ॥३४-३५ 'तो गोयम वुच्चइ० ॥३६
'गोयम सत्तु-सेणि धावंती दीसइ तुम्भ-भणी आवंती ॥३७ स्वर्गि मर्ति पायालि वदीती सा तई एकलडइ किम जीती' ॥३८ 'एक पंच पंचि दस पाडिय दस जिणि सेस-सत्तु निद्धाडिय' ॥३९ केसि कहइ 'रिउ किसा कहीजई तो गोयम-गुरु ते पयडीजई ॥४० 'जे कसाय इंदिय-रिउ भणिय, इक मनि जीतइ ते सवि जिणियइँ ॥४१ जं मण-विण बिहुँ बंध न लागईं जिम बिहुँ भाई सुणियइ आगइँ ॥४२
'साहु साहु गोयम०' ॥४३-४४ 'तो गोयम वुच्चइ.' ॥४५
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