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प्राचीन गुर्जर काव्य संचय
१. केसीगोयम-संधि
अस्थि पसिद्ध सुद्ध-सिद्धते कहिउ उत्तरज्झयण-महंते ॥१ केसी-गोयम-धम्म-विचारू
संधि-बंधि सु कहिज्जइ सारू ॥२ आसि पास-जिण भवण-पसिद्धउ तासु सीसु चिहुँ नाण-समिद्धउ ॥३ केसि-कुमारु समण-मुणि-जुत्तउ सावस्थिहि तिंदुग-वणि पत्तउ ॥४ अणु सिरि-वीरहँ सीस-पहाणू सुय-केवलि गोयम जगि भायूँ ॥५ बहु-परिवारि वसुहि विहरंतउ तिहि पुरि कुटुंग-वणि संपत्तउ ॥६ नयरि बिहूँ पखि मुणि विहरता पिक्खि परुप्पर मणि संभंता ॥७ जाणिवि गुरु वय-वेस-विसेसू अक्खहि निय-निय-गुरुहँ असेसू ॥८
तो नाण-पमाणी कारण-जाणी सीसहँ संसय-हरण-कए । वय-जिट्ठ गुणेवी लाभ मुणेवी केसि-पासि गोयम वयए ॥९
गोयम सीस-संघ-संजुत्तउ
केसी पेक्खविणु आवंतउ ॥१० कुस-तिण-आसण आदरि देई विनय करी गोयम बइसेई ॥११ दो-वि मुणिंद उपसम-रस-भरिया निय-निय-मुणि-मंडलि परिवरिया ॥१२ ससि-रवि-सरिस-तेय ते सोह! निम्मल-नाण-गुण. जग मोहइँ ॥१३ बिहुँ पखि मिलिय पिखेविणु लोया कोऊहलि आवइ स-पमोया ॥१४ 'बिहुँ पखि होस्यइ वाद' इसउँ भणि गण-गंधव्व मिल्या गयणंगणि ॥१५ तो मुणि-संसय-भंजण-रेसी कर जोडेविणु पभणइ केसी ॥१६ 'महाभाग गोयम गुण-रासे हउँ काई पूछउँ तुम्ह-पासे' ॥१७
तो गोयम वुच्चइ 'जं तुम्ह रुच्चइ तं पुच्छेह भदंत लहू' । तं निसुणि महेसी पभणइ केसी विणय-धम्म पयडंत बहू ॥१८ आरम्भ : ए ६० श्रीकेशीगौतमाय नमः ।
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