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________________ १५ २२. आरम्भ में एक दोहा । बाद में सभी भासों मुख्य छन्द वस्तुवदनक । अन्त में एक दोहा । २३. छन्द पारण (अथवा लघु चतुष्पदी) : प्रत्येक चरण में ६+४+५=१५ मात्राएं ( अन्तिम तीन मात्राओं का स्वरूप - ) । २४. छन्द वदनक और १३+१६ की चतुमादी के मिश्रण से बनी हुई द्विभङ्गी । चरणों का अन्त्याक्षर प्रायः दीर्घ । अन्तिम छह चरणों में वदनक | -) +१३ ( अन्त में 'ए' का प्रक्षेप) की चतुष्पदो । विषम २५. छन्द १५ ( अन्त में चरण प्रास-बद्ध । २६. छन्द १३ + 'वर' अथवा 'ए' +१३ 'ए' - ऐसे मात्रा बन्ध वाली चतुष्पदी । २७. खण्ड १ : प्रथम १५+१३ की चतुष्पदी की दो तुक | बाद में १२ मात्राओं की समचतुष्पदी की एक तुक । बाद में गीता या हरिगीता (प्रत्येक चरण में २+३+४+ ३+४+३+४+५ (अन्त में - ) - २८ मात्राएं) की एक तुक । बाद में १५ +१३ की चतुष्पदी की दो तुक । बाद में १२ मात्राओं की समचतुष्पदी की एक तुक । बाद में हरिगीत की एक तुक | बाद में १५+१३ की चतुष्पदी की पाँच कडी । गीत होने से मात्रा-बन्ध शिथिल है । खण्ड २ के घडलका छन्द वदनक है । खण्ड तीन का छन्द वस्तु है । खण्ड ४ दोहा-बन्ध के आधार पर ध्रुवपद-युक्त गेय रचना | २८. छन्द १५+१३ की चतुष्पदी | विषम चरण प्रास-बद्ध | २९. आरंभ में एक मालिनी छन्द (प्रत्येक चरण में - ऐसे १५ अक्षर, ८ अक्षरों के बाद मध्य यति; और चरणान्त यति के स्थान प्रासबद्ध) और बाद में हाकलि छन्द ( प्रत्येक चरण में ४+४+४+ = १४ मात्राएं, चतुष्कलों में जगण निषिद्ध, गेयतार्थ प्रत्येक चरण के आरम्भ में 'तु' या 'त' का प्रक्षेप) की दो तुक, बाद में अन्त तक ८ (=४+४)+८(=४+४)+७ (=४+ - ་) की पटूपदी, जिसमें प्रत्येक अर्ध के आरम्भ में 'त' रखा गया है । ३०. छन्द हरिगोता । ३१. छन्द - प्रकार षट्पदी । प्रत्येक अर्ध में ८ ( =४+४)+८ =४+४)+११(=६+४+१, अन्तिम तीन मात्राओं का स्वरूप ) प्रत्येक अर्ध के आरम्भ में गेयतार्थ 'त' का प्रक्षेप । ३२. छन्द- प्रकार आन्तरसमा चतुष्पदी । प्रत्येक अर्ध में मात्रा संख्या १६ (८+८)+११ ( = ६+४+१; अन्तिम तीन मात्राओं का स्वरूप )। ३३, ३५, ३६. छन्द वस्तु अपर नाम रड्डा । ३४. छन्द मदनाबतार | ३६. मुख्य छन्द पडी । अन्तिम तुक में मदनावतार । ३८. छन्द दोहा १ - ३, ५ - १०, १२ - १४, १६-१७, १९, २१, २५, २९, ३१, ३५, ३७–३९, ४३, ५०, ५२ इन क्रमाङ्क वाली तुकों में । अन्यत्र सोरठा । ५३वों तुक के छन्द का स्वरूप पाठ की भ्रष्टता के कारण अस्पष्ट है । ३९. मुख्य छन्द दोहा । तुक ३ में वदनक । तुक १२ और १३ में उपदोहक (प्रत्येक अर्ध में १३+१२ मात्राएं ) । तुक ४ का छन्द पाठभ्रष्टता के कारण अस्पष्ट । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003831
Book TitlePrachin Gurjar Kavya Sanchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Agarchand Nahta
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1975
Total Pages186
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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