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________________ १३ कडवक ३. कडवक-देह का छन्द वदनक । कडवक ४. कडवक-देह का छन्द पद्धडी । अन्त में दो गथाएं । ३. आरम्भ में आदि घत्ता में षट्पदी की एक तुक, जिसमें १०+८+१३ (अन्त १) ऐसा चरण-बिभाग । कडवक १. ३. कडवक-देह का छन्द पद्धडी । , २. ४. मदनावतार । ४. खण्ड १. १५+१५+१३ ऐसी मात्रा-संख्या वाले चरण विभाग युक्त त्रिपदी छन्द. १५ मात्राओं वाले चरण का गणविभाग : ६+४+५ ।१३ मात्राओं वाले चरण का गणविभाग : ६+४+ । खण्ड २ छन्द अपदोहक या सोरठाः ११ मात्राएं (गणविभाग ६+४+१, अन्त्य ३ मात्राओं का स्वरूप-) विषम चरणों में और १३ मात्राएं (गणविभाग ६+४+३; अन्त्य ३ मात्राओं का स्वरूप ) सम चरणों में । विषम चरण प्रासबद्ध । ___ खण्ड ३. छन्द वस्तुवदनक (अथवा वस्तुक अथवा रोला) । २४ मात्रओं का चरण । ६+४+ - अथवा , +४+६ ऐसा गण-विभाग । ___ खण्ड ४. छन्द सोरठा । विषम चरणों में चार मात्राओं के बाद क्वचित् गेयता-निमित्त 'ए' अक्षर । खण्ड ५. छन्द सोरट्ठा । विषम चरणों में अन्त के बाद 'ए' अक्षर गेयतार्थ अधिक । ५. आरम्भ में १३+१.६ मात्राओं की आन्तरसमा चतुष्पदी को एक तुक । बाद में अन्त तक, वदनक के दो चरणों और उपर्युक्त चतुष्पदी के चार चरणों के मिश्रण से बनी हुई द्विभङ्गी । ६. आरम्भ में १३+१६ मात्राओं की आन्तरसमा चतुष्पदी की एक तुक । बाद में अन्त तक, वदनक के दो चरणों और उपर्युक्त चतुष्पदी के मिश्रण से बनी हुई द्विभङ्गी । ७. भासा १-४. छन्द वदनक । ठवणि १-२. छन्द दोहा (सोरठा के समविषम चरणों का विपर्यय) । क्वचित् विषम चरणों के आरम्भ में गेयतार्थ 'त' अक्षर का प्रक्षेप । ठवणि ३ में एक ही तुक है, जिसका छन्द ११-१० मात्राओं की आन्तरसमा चतुष्पदी है । तुक ३२ से ३५ तक का खण्ड हस्तप्रति में भासा कहा गया है, मगर उसका छन्द दोहा है, जो कि अन्यत्र ठवणि में प्रयुक्त किया गया है । ठवणि ४ का छन्द वही है, जो ठवणि ३ का है -अर्थात् १२+१० मात्राओं की आन्तरसमा चतुष्पदी । छठवीं भासा का छन्द अनियमित स्वरूप का मदनावतार ज्ञात होता है । ठवणि ५ की ४२ से ४६ तुकों का छन्द वस्तुवदनक है । ४७ से लेकर अन्तिम तुक तक वदनक छन्द है। ८. आरम्भ में ११+१० मात्राओं को आन्तरसमा चतुष्पदी की एक तुक । बाद में १८ वी तुक तक वदनक और १२+१० की चतुष्पदी की एक एक तुक के मिश्रण से बनी हुई द्विभङ्गी । अन्तिम १८ वी तुक का छन्द वदनक । सर्वत्र वदनक की पङ्कितयाँ गुर्वन्त हैं। ९. छन्द वस्तु ( रड्डा । मात्राके घटक की पहले चरण का आद्य ७ मात्राओं के खण्ड का आवर्तन । दूसरे और चौथे चरण में मात्रासंख्या ११ अथवा १२ । Jain Educationa Intemational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003831
Book TitlePrachin Gurjar Kavya Sanchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Agarchand Nahta
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1975
Total Pages186
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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