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जं अच्छइ के दीहडा तं घणु मीठउं रंधि । कल्लि जि दिट्ठा एकि मई जंता चिहुर बंधि ॥४५ धणु घर-मज्झे छडिउं परिअणु मुक्क मसाणि । जीविहिं सरिसा दुन्नि गय नहि पच्छिलइ वसाणि ॥४६ धम्मु न संचिउ तपु न कीउ नमिउ न जिणवर-देउ । जीव जु हीडइ दुत्थियउ तहं फुल्लहं फलु एउ ॥४७ दानु सील तपु भावना एह तरंडउ जांहं । नवकारिहिं वउलावणउं सिद्धि घरंगणि ताहं ॥४८ अइ-सीला वि न रुच्चई य साकर पित्त-वसेण । तह जिण-धम्मु न रुच्चई य जीवहं कम्म-वसेण ॥४९ हत्थिहिं किज्जइ कम्मडउं मणि झाइजइ देउ । अइसउ पहु सेवंतयहं अंगि न लग्गइ खेउ ॥५० संसारड[इ] भयामणइ आस कि बंधण जाइ । सुप्पइ अन्न मणोरडइ पुण अन्नेहि विहाइ ॥५१ जीवा किं विलवेसि तुं जस्स(?) छम्भिहिं सिउं वाणि । अप्पउं पोसइ पर दहइ करइ परत्तह हाणि ॥५२ जिम कम्मह तिम धम्मह वि जइ जीउ तत्ति करेउ । तउ नहु अंधउ वाउ जिम डालिहिं डालि भमेउ ॥५३ जिम घर-कारणि निसि-दिवसु इह जीउ सुप्पहि लागु । तिम जइ धम्मह दुइ घडीय तउ पामइ सिउ सग्गु ॥५४ मह घरु मह पुरु मह सयणु ए मह-महउ निवारि । जीव करतउ मह-महइ पुण पडिसि[३] संसारि ॥५५ गुड्डा-नमणिहिं कमणु गुणु होउं कुसुद्धउं जाह । लुद्धा बयइ रन्न-मई झाडंतरि हरिणाई(? हं)॥५६ तिल दहइ(? हि) जव दहइ(? हि) सप्पि दहि तोइ न तप्पइ अग्गि । जिणि पंचिंदिय वसि कियं तेहि वसेवउ सम्गि ॥५७ जिण-वंदणु वर-गुरु-विणउ तवु संज[मु] उवयारु । जं किज्जइ खण भंगुरह देहह इत्तिउ सारु ॥५८ संसारडइ भमंतड[६] लद्धां बे रयणाई ।
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