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________________ १५४ जिणवर-सामीउ साहु गुरु । चिंतामणि-तुल्लाई ॥५९ ति करत न वारीयइ जइ नवि संसउ होइ । लोइ सुणिज्जइ वरिस-सउ | विरलउ जीवइ कोइ ॥६० तत्ति पिराई करंतह जेण भरिज्जइ भंडु । तउ वरि लिज्जइ जिणवयणु जिम संसार तरंडु ॥६१ बीहिज्जइ पाइक्कडां दूरह आवियडांहं । कम्मह कह वि न छुट्टियइ अंगह उट्टि चडांह ॥६२ रे हीयडा कु-मित्त तुं गुणिहिं न लीणउ जाइ । संझह भरीउं भरणु जिम पसरिवि दाणउं(?) थाइ ॥६३ नित्तु निवल्ली त्रेवडीय ऊगिइ ऊगिइ सूरि । अप्पा मरणु न जाणीयइ किं ढूकडउं कि दूरि ॥६४ ऊपरवाडइं आविसिइ तणउ कियंतह हत्थु । कहि अवेलां वाहिसिइ नवि संबलु नवि सत्थु ॥६५ सिरि इक्केकउं पलीयउउं आविउं अग्गेवाणु । नीसरि जुव्वण-पाहुणा जे खंडेसिइ माणु ॥६६ गिउं जुब्बणु बंबलि करवि छडा पीयाणा देवि । जर थक्किय मत्थइ चडवि धवला गुड्डर देवि ॥६७ मोहु न मेल्हइ घर-तणउ जइ सिरि पलीया केस । वलि वलि जिण-धम्मह तणा को देसिइ उवएस ॥६८ २९.१ हीय डा, मिरीय. २९.२ मणु पसरंतु. २९.३ बित्तिय पुज्जइ पंगुरणं. २९.४ तित्तियं पाय. इसके बाद नीचे के पद्य अधिक हैं: हीयडा जिणवरु वंदियइ समइ विरू[य]उ कालु । जिम मच्छह तिम माणसहं पडइ अचिंतउं जालु ॥७० वीर विशाले लोयणे महु एतलं करिज्ज । बारह नव पंचह ऊयरि कम्मर(?)हेउ म निज्ज ॥७१ एह जाणेविणु भवियजणु जं कोइ माणु करिज्ज । संसारडउ लीलई तरीय सिद्धि-पुरी पा(?पा)मिज्ज ॥७२ ३० नहीं है । पुष्पिकाः इति ढुंगडउं समाप्तः । Jain Educationa Intemational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003831
Book TitlePrachin Gurjar Kavya Sanchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Agarchand Nahta
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1975
Total Pages186
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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