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________________ - छन्दों की दृष्टि से भी प्रस्तुत ग्रन्थ की रचनाएं महत्त्व की हैं, इनमें कई प्रकार के छंदों का प्रयोग हुआ है । दोहा और वस्तु छंद की स्वतंत्र रचनाएं इस ग्रन्थ में है ही, पर अन्य रचनाओं में भी कई तरह के छंद और देशियों का प्रयोग हुआ है। इनमें से अधिकांश रचनाएं गेय रही हैं । जैन मन्दिरों और उत्सवों आदि में वे रचनाएं अभिनय के साथ खेली जाती थी। इसका उल्लेख कई रचनाओं के अन्त में पाया जाता है । 'युगप्रधानाचार्य गुर्वावली' में भी रास, चर्चरी आदि के खेले जाने के कई उल्लेख मिलते हैं । इस सम्बन्ध में हम अपने लेखों में काफी प्रकाश डाल चुके हैं, यहां तो केवल सूचन मात्र ही किया गया है । प्रस्तुत ग्रंथ में प्रकाशित चालीस रचनाओं में से लगभग आधी रचनाओं में तो रचयिता कविओं का उल्लेख नहीं है । आसिग कवि की तीन और पाल्हण की दो रचनाएं और देपाल की तीन रचनाएं हैं बाकी एक एक कवि की एक एक रचनाएं ही हैं । नीचे संक्षेप में इस ग्रन्थ में जिन जिन कवियों के नामोल्लेख वाली रचनाएं हैं, उन कवियों का परिचय दिया जाता है-- १. जिनप्रभसूरि-इस नाम वाले खरतरगच्छाचार्य तो बहुत प्रसिद्ध हैं, पर प्रस्तुत ग्रंथ में 'नमयासुन्दरी संधि' छपी है, उसके रचयिता जिनप्रभसूरि इनसे भिन्न हैं । गायकवाड़ ऑरिएण्टल सिरिज से प्रकाशित 'पत्तनस्थ प्राच्य जैन भाण्डागारीय ग्रन्थसूची' के पृष्ट १०२, १८८ से १९१ और २६१ से २७१ पृष्ट में इन जिनप्रभसूरि की रचनाओं का विवरण छपा है । उसके अनुसार ये आगमिक परम्परा के थे। वे देवभद्रसूरि के पट्टधर और शत्रञ्जय तीर्थ के परम भक्त थे। अपभ्रंश में इन्होंने काफी रचनाएं की हैं, वे पाटण भंडार की ताड़पत्रीय प्रतियों में प्राप्त हैं । उनकी संक्षिप्त सूची इस प्रकार है-- १ 'ज्ञानप्रकाशकुलक' गा. ११४ - १६ 'चाचरिस्तुति' गा. ३६ २ 'परमसुखद्वात्रिंशिका' १७ 'अनाथीसन्धि' गा. ६५ ३ 'नर्मदासुन्दरीसन्धि' १८ 'जीवानुशास्तिसन्धि' गा. १८ ४ 'जिनागमवचन' १९ 'युगादिजिनचरितकुलक' गा. २७ . ५ 'जिनमहिमा २० 'नेमिरास' ६ 'वयरसामिचरिय' गा.६० २१ 'भावनाकुलक' गा. ११ ७ 'विचारगाथा' गा. २४ २२ 'अन्तरंगरास' गा. ११ ८ 'श्रावकविधि' गा. ३२ २३ 'मल्लिनाथचरित' गा. ५१ ९ 'धर्माधर्मविचारकुलक' गा. १८ २४ 'चैत्यपरिपाटी' १० 'आत्मसंबोधकुलक' गा. ३३ २५ 'मोहराजविजय' ११ 'सुभाषितकुलक' २६ 'स्वधर्मीवात्सल्यकुलक' गा. २४ १२ 'विवेककुलक' गा. ३२ २७ 'अन्तरंगविवाहधवल'. १३ 'भव्यचरित' गा. ४४ २८ 'जिनजन्ममह' १४ 'भव्यकुटुंबचरित' गा. ३७ २९ 'नेमिनाथजन्माभिषेक' गा. १० १५ 'गौतमचरित्रकुलक' गा. २८ ३० 'पार्श्वनाथजन्माभिषेक' गा. ११ Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003831
Book TitlePrachin Gurjar Kavya Sanchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Agarchand Nahta
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1975
Total Pages186
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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