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४०. नवकार-फल-स्तवन किं कप्पत्तरु रे अयाण चितहि मन भित्तरि किं चिंतामणि कामधेनु आराहहि बहु-परि । चित्रावे लिहि काजु किसिउँ देनंतर लंघ रयण - रासि - कारणिहि किसिउँ सायरु उल्लंघउ || चउदह - पूरव सारु जगे लड एह नवकारु । सयल का महियल सरहुँ दुत्तरु तरइ संसारु ॥ १ केवल - भासिय-रीति जिके नवकारु अराहहि भोगवि सुक्ख अनंत अंति परमप्पय साहहि । झाणिहि सुर- रिद्धि पुत्त - सुह विलसइ बहु - परि इणि झाणिहि सुर-लोकि इंद्र-पदु पामहि सुंदरि ॥ एहु मंतु सासुतउ जगि अचित चितामणि एहु । समरणि पाप सवे टलहि रिद्धि-सिद्धि नव-गेह ॥२ निय - सिरि उप्पर झाण- मज्झि चिंतवहु कमल नर कंचणम अटू - दल सहित तिसु माहि कनक वर । तिह बइठा अरिहंत पउम आणि फटिक मणि सेय-वत्थ पहिरेवि पढम पय चिंतहु नियमणि ॥ निवारिय- चउगइ-गमण पामिय- सासय सुक्ख । अरिहंते-झाणिहि जे मिलहिं तिह अजरामर मुक्ख ॥ ३ पनर - भेय तह सिद्ध बीय पय जे आराहहि M राता - विदुम-तण वन्नि सिरि सोहग साहहि ।
राती धोवति पहिरि जपहिं सिद्धह पुव्वहँ दिसि सयल लोय तह नरह होइ ततक्खिण सव्व वसि ॥ मूल-मंतु वसिकरण इहु अवरु सहू जगि धंधु । मणि मूली अउखध करहूं
बुद्धि-हीण जाचंधु ॥ ४
१. १. चत चिंतउ भिंतरि १.२. आराहइ, आराहउं. १.३. लघइ १.४. उल्लंघइ. १.६. सरइ, तरि. २.१. अराहइ. २.२. परमप्पह, साहइ. २.४. पामइ. २.६. टलइ, नियगेहि . ३.२. चितवs. ३.३. तह, तिहां, अरिहंतदेव पउमासणि फिटकमणि ३.४. चितवइ, चिंतउ, जंपइ, मनमहिं. ३.५. निव्वारणं. ३.६. झाणिहि जिम, झणिहि तुम्हि लहउ, तुम्हि अजरामर ४.१. जे सिद्ध, ति सिद्धि, आराहइ. ४.१. साहइ. ४.३. जपइ सिद्धि ४.५. वसिकरण हुय. ४.६. ऊषध.
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