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प्राचीन गुर्जर काव्य संचय जीव कडेवर इम भणइ मइ हुँतइ करि धम्म । हुँ मट्टी तूं रयणमइ हारि म माणुस-जम्मु ॥२८ हियडा संकुडि मिरिय जिम मन पसरंत निवारि । जेता पहुचइ पांगरण तेता पाइ पसारि ॥२९ भासा-समिति सिक्खिआ जा जिण वयणह सारु । हियडउँ दुग्गइ संमहिय पट्रविरं सुविचार ॥३०
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३०.४. सविचार अंत : दंगड समाप्तं ॥
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