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दंगड
१३१ संजमि भरि वोहित्थडउ मइँ जाएवउँ पारि । मण-वचणिहि ही जे लीउ पुण पडियउ भव-संसारि ॥१४ पर-परिभवु सज्जण-विरहु अनु दालिदह दाहु । ए एहा ऊमाहडा
फेडइ जिणवर-नाहु ॥१५ म-न रूसउ म-न रोसु करु रोसहि नासइ धम्मु । धम्म-विहूणा नरय-गइ दुल्लह माणुस-जम्मु ॥१६ कोह पवावु देह-घरि तिन्नि विकार करेइ । अप्पउँ तावइ पर तवइ परतह हाणि करेइ ॥१७ जं दिज्जइ पंचंगुलिहिण तं परि अग्गइ थाइ । जम्मह केरइ हल्लोहलइ मोट कि बंधण जाइ ॥१८ सासि चलंतइ सउँ चलइ सम्मइ धारण भेउ । न-हु तेहइ हल्लोहलइ किम समरिज्जइ देहु ॥१९ जो न-वि पहिउ न पाहुणउ न-वि साहम्मी लोइ । सो जीवंतु रोइ धणि मूइ स मंगुल होइ ॥२० धणु राउलि जीविय जमइ रद्दउँ पक्खेलाह (?) । हूंतुं जेहि न माणीउँ छारड मुंढी ताहँ ॥२१ कल्लरि हऊउँ चलहरण(?) पंडरि हऊउँ ढज्ज(१) । कंत कुडीरउँ भज्जिसइ कइ कल्ले कइ अज्जु ॥२२ सूधा बाँधइ दीहडइ चिंतिज्जइ अप्पाणु । जीव पियाणा घंधलिहि कहि संजम कहि दाणु ॥२३ भारी-कम्मा जीव तूं जइ बुञ्झसि तु बुन्झि । सयल कुटंबू खाइसि [इ] मत्थई पडसिइ तुज्झ ॥२४ जिम सउणा रवि-उग्गमणि उड्डवि तरु छंडति । तिम कुटंबह मागसह मरिय दिसो-दिसि जंति ॥२५ थक्का गुड्डा दो-वि कर झामल हुई सु-दिट्ठि । जीवहि धम्म न संचीउं किय कुटंबह विट्टि ॥२६ अप्पणु रंजि म रंजि पर करि सच्चइ ववहारु ।
देउलि दिन्ने भाटके को भाऊ को आहु?) ॥२७ १४.१. संजम. वोहत्थडउ. २. जाणविउं. २०. १. पहीउ, २१. ४. ढारढ. २४.२ जायविउं. २५.४ मरीय. २७.३. पुहचइ.
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