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________________ ३९. दंगडु जिहि जिण-धम्मु न जाणियए नवि देवहँ गुरु-भत्ति । तहि तउँ जीवा दंगडए वससि म एक-इ रत्ति ॥१ जहि सम्मत्तु न आलवण संजम नवि चारित्तु । . तहि तउ जीव म रइ करिसि झिज्जइ जेण परत्तु ॥२ दाणु सपत्ति न दिन्नं चंगं तव निअमेण न सोसिअ अंग । जिण न नमिअ भव गहण सत्थउ(?) हा हा जम्म गयउ अकयत्थो ॥३ जिम पंथि पहियउ निसंबलु दिसि पक्खा जोइ बहु भुक्खियउ । धम्म-विहूणा जीव तूं (!) जहि जाइसि तहि दुक्खियउ ॥४ जहि विहुँ पहरह मग्गडउ तहि जिय संबल लेइ । जहि चउरासी भव-गहण तहि अवहेरि करेइ ॥५ उच्छिन्नु न-वि लब्भिसइ मग्गंताँ तिणि देसि। काँइ थिट्टह चालियइ(?) संबलु अप्पण-रेसि ॥६ करि संबलु भरि भत्थडी इहि अप्पणा घराहु । अग्गइ विसमा वाणीया वेसाहड्ड कुआहु॥७ अत्थह जीविअ-जुव्वणह जो नवि लाहु लेइ । गुणि तुइँ धाणुक जिम परि हत्थडा मलेइ ॥८ गयउँ कडेवर चेइहरे मनु मेल्हे विणु हटि । बिहुँ लाहाँ इक्कु नही सूनी भावइ सट्टि ॥९ विसमी गय कम्मह तणी धीरा काँइ करंति । तहइ विस-कक्करि आहुडिय दृढ गंठिण भज्जंति ॥१० जं चंगं परिणामि सुहु तं जम्मेवि न लेइ । चालणि जिम मिच्छत्त जिउ कण छंडवि तुस लेउ ॥११ मिच्छादिद्वि पमाइ जिउ वार वार किमु वुच्चइ । जसु नरयह उप्परि डोहलउ तसु जिण-धम्मु कि रुच्चइ ॥१२ गय-खंधि चडेविणु गहिलडी पुण खरि केम चडिज्जइ । जिण नामेविणु कुट्टडी अन्नह किम नामिज्जइ ॥१३ १.३. जीवां. ४.४. दक्खीयउ. २. भक्खिय उ. ५.१. मग्गडइ. २. लेउ. ३. गहणि. ६.४. संबलु. ८.३. धाणिक्क. ९.१. चेइयहरे. २, हटे. ११.१. सहु. १२.४. तस. १३४. गहलडी. ४. केम. Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003831
Book TitlePrachin Gurjar Kavya Sanchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Agarchand Nahta
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1975
Total Pages186
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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