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प्रकोण दोहा
त्रोडिवि छडिवि खग्गडउ नासिवि कहँ पइसेसि । वलि करि सुणहु वि भग्गडउ पागि चमक्कउ देसि ॥५२ बापहि द्रोहीजइ (?) वलउँ नाठइँ त रे नाठि मरेसु । (१)करेविणु रणि खलउ जीविउ काइँ करेसु ॥५३ मिल्हिवि सामिहि चाड प्रसाह (?) भइ नासिवि गयउ । भली विगोई राड सहियह-माही पातगी ॥५४ भंडाली मन फोडि मू-सामहु पइ बीहिसइ । एह ज अम्हह खोडि जं घर-सूरत्तणु वहइ ॥५५
घणउ घणेरउ ढोइ करि-केरउ मणु तोइ मयगल-तणइ कपोलि महुयरु मुहुँ डबोलि समुद्रहि मुक्की चाह बूढा अंसु-प्रवाह
मउलउँ मउलउँ खाउवउँ । सल्लइ सल्लइ वाहिरउ ॥५६ आंग वि कन्न-पहरडा । ओ थाकउ ऊठइ नहीं ॥५७ महणारंभि जि रयण गय । तिणि भणि खारउ बापुडउ ॥५८
५२.२. पयसेसि. ४. देइ. ५६.४. सल्लई. ५७.१. मयगलि. ५८.३ व्हा. १५
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