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________________ १२८ प्राचीन गुर्जर काव्य संचय जइ विच्चिज्जइ सीसु जइ पणमिज्जइ वइरियहँ । वलइ न तह-वि हु दीसु जइ रुट्ठी विहि माणुसहँ ॥४० चंदाइच्चहँ केम भाऊ आवइ आथवणु । ता दाणव ता देव जा विहि जोइ सामुहउँ ॥४१ * जिम जिम सुयण सहंति परिहउ लघुयत्तण मणइ । तिम ति[म] पिल्लिज्जति पत्तावसरिहि दुग्जणहि ॥४२ ईवैइ रीती वलवलइ कोइल महुर-सरेण । जह मुणि झाणहँ टलवलइ अखलिउ पंचसरेण ॥४३ चंद म ऊगवि लोइ गउ साजण-तणउँ जसु । आपणु खाँपणु जोइ लाइय तुहुँ लाज ह मही (?) ॥४४ साजण समउ न कोइ जं रुटु वि अमयहँ निलउ । जइ कटिजइ तोइ सुरहिउँ चंदण-रुक्खडउ ॥४५ तुह विहि केही आलि एहु ज दूजणु निम्मियउँ । मज्झन पसरि वियालि जासु पराइ तातडी ॥४६ दूजणु मरमु लहेइ लान्हउ घायउ पर-तणउँ । पाछइ तं जि करेइ जं खंताह (?) न वीसरइ ॥४७ इयइ जिणि सउँ संगि निच्छइ आवइ दोसडउ । सो दूजण-जण-संग ओ अच्छउ काजु नहीं ॥४८ आगइ अमिउँ झरेइ पाछइ सुणहउँ जिउँ भसइ । दूजणु किं न मरेइ ओ फीडइ नीजइ नहीं ॥४९ जिम कन्नुप्पलि ताडियउँ मइँ पिउ पिम्म धरेइ । रण-भरि पहरण-पाडियउ तिम रोमंचु वहेइ ॥५० आयड्ढिय-करवाल रण-वल्लह पिय सुणि वयणु । जइ मिल्लहि वरमाल सुर-बहु तो म. संभरे ॥५१ ४१.१. केमि. ४२.२. भणइ. ४३. २. नहु. ४५.३. अपणु. ४५.२. यमयहं. ४. सुरहुंठ, Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003831
Book TitlePrachin Gurjar Kavya Sanchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Agarchand Nahta
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1975
Total Pages186
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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