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प्रकीर्ण दोहा
वेसहँ तहि परि नेहु धण-संभावण जहि नहीं (?) । होइ जु (?) धण गेहु धणि लेवइ तहि मणु रमइ ॥२७ पत्तिउ जाणिउ मिल्ली वेस न कासु-वि अप्पणी। वुल्लंति विस-विल्लि माहप्पहँ विहवहँ गुणहँ ॥२८
बलि तहँ बलि तहँ जाउँ हलि हउँ काणण मृगडाहँ । दित जु दिदा अप्पणउँ जीविउ गायणडाहँ ॥२९ केहा ताहँ विसाय जे मारिय गीइण हरिण । कासु कहिज्जइ भाय अमिउ वि जइ जीविउ हरइ ॥३० गीयइँ कव्वइँ वल्लहइँ जाहँ न अमयहँ कुंड । माणुस वेसिण ते वसह अह गदह अह अँड ॥३१ ते चंगा सारंग गीयह कारणि जे मुया । । मारणहार न चंग जे मारहिँ वीसासि करि ॥३२ रन्न-निवास-जडाहँ हरइ पसूण वि जं हियउ । तं पिउ गीउ न जाहँ सच्चइँ तहँ रुच्चइ कसउँ ॥३३ भाऊ रुंख-वि जेण मिल्हहि कुंपल फुल्लियहि । जइ पर गीइण [तेण] खर पत्थर नहु रंजियहि ॥३४ तसु कव्वहँ तसु गाइयह मत्थइ निवडउ वज्जु । जं निसुणता कन्नडा अप्पहँ मुणहि न रज्जु ॥३५ भाऊ गीउ त गीउ जं कन्नहँ रलियावणउँ । काइँ त भणियइ घीउ जं मुहु मोडइ खाजतउ ॥३६
दसणहँ पिसुणहँ जीवियहँ विहवहँ अनु महिलाहँ । करिउ न सक्कइ सो-वि विहि वारणु विचलंताहँ ॥३७ कामिय दूमिय कामिणिहि मलिउ मरटु खणेण । काइँ विद्वत्तउ हय-विहिण थणहर पाडतेण ॥३८ अणुकूली विहि माणुसहँ जहँ नीजइ तहँ जाइ ।
महिल व पिम्म-गहिल्लडी जिम किज्जइ तिम थाइ ॥३९ २९.१. जाउ. ३. दिति, ३०.२, गीयण, ३. भाव. ३१.२. पियवहुं. ३९.२. जाई.
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