________________
२६
प्राचीन गुर्जर काव्य संचय जइ आवइ ता दस भला अह नावइ तो वीस । जो चित्तहँ उत्तारियउ तहि सउँ केही रीस ॥१३ नयणिहि वयणिहि जा रमइ सा विरल च्चिय नारि । कडि-कर-थण-हल्लावणी दीसइ घर-घर-बारि ॥१४ गयउ सु किं कुंभारु सहुँ तीणइ जु मयच्छियहँ । मण-मोहणु आकारु जं नहु दीसइ बालियहँ ॥१५ पवसंतिण पावासुइण गोरी तिम किम दिद। जिम अप्पहँ अनु गोरियहँ गलि जम-पास निविट्ठ ॥१६ विरहिणि-नीसासहि अनल घर-चुल्लिहि जे दित्त । पाडोसिय-घर झुपडा तेहि असेस पलित्त ॥१७ केमइँ तिम लग्गति अवरुप्परु मिहुणाई दिनु । जिम सह निरु डझंति विरह-हुयास-पलीवणइ ।।१८ रस-कव्वइँ अनु मित्तडा अनु कल-गीय-निनाय । तिन्नि-वि विरह-करालियहँ मण-वीसंभा-ठाय ॥१९ जाणउँ मोर लवंति गरुइहि सद्दडिहि । मरती-वत्त कहंति देसंतरि कंतहँ ठियहँ ॥२० तं काइउँ घण पिम्म घर माणसु विहडिवि जाइ। जिणि सल्लंतिण हियडइहिँ मरणु वि मंगलु थाइ ॥२१ बलिकिज्जउँ हउँ ताहँ पडिवन्नय-सुहडहँ जणहँ । वल्लहयर-चत्ताहँ जाहँ न रवइउ (१) मणु रमइ ॥२२ भाऊ रूउ असारु दाणु असारु असारु गुणु । जिहि सहुँ जसु तिलतारु सो तसु आजम्मु वि हवइ ॥२३
*
धणि लेवइ जसु जाउ (2) तासु न कोइ अप्पणउँ । चडइ न वेसहँ भाउ तिणि धण-हीणइ वम्महि वि ॥२४ नेहि न अत्थु पवित्थरइ अत्थि न वड्ढइ नेहु । सामि वियड्ढ-विलासिणिहि विसमा संकडु एहु ॥२५ धण-दाणिण जे नेह धणि थक्कइ ते उवसमहि ।
पाउसि हुति जि मेह ते वच्चहि सउँ पाउसिण ॥२६ १४.२. विरलु. १५.१. कुंभार. १६.३.यिम. ४. जिम. विविट्ठ. १८.१ तिन. १९.४. छाम. २१.२. णुसुमा सु. २२.६. वल्लाहयार. २६.२. धम्मिणि.
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org