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प्राचीन गुर्जर काव्य संचय किवणि तालउ दिन्हु घर-बारि लंघाविय तिणि घरणि तिगि य जाइ मा सेलि लग्गउ(?)। नव लक्ख द्रम्मह थविय गंठि इक्कु रूयउ न वद्धउ ॥ नयणिहि न पडइ निंद्रडीय दह दिह कीयउ कम्मु । नवलख-द्रम्मह बाँसियउ किविणि विढत्तउ द्रम्मु ॥६
ताव किवणह लग्गु अवरतउ अणु दुम्मणु मणि हूयउ मिलिउ लोउ रोअणह लग्गउ । मंदिर-गेहिणि रूसविय हुयउ स लिल्लर-वेसि । किविण सु मुच्छा-विहलु गउ नवलख-द्रम्मा-रेसि ॥७
ताव बालिय किवणु बूझविउ तालउ नव-खंड किउ वावि वावि मंदिरु जुआविउ । नव-खंड ग्रह-पुज्ज किय नवइ लक्ख खण ताह आविय ॥ तह बाली-केरइ सतिण उड्डिवि गउ पाविंदु । कर उब्भिवि भासिगु भणइ किविणह.मणि आणंदु ॥८
___निसुणि सुंदर' किवणु पभणेइ 'सति सोलि तुहु उत्तमिय तुहु ज देवि अपछर पसिद्धिय । धन्नु एहु करतारु (ति)पर जेण मज्झ तुहु घरणि दीन्ही । खाह पियह धनु विद्रवह वाहि अवारिय-सत्तु । जं जं भावहि तं करहि किवणु भणइ विहसंतु ॥९
६. ८. लक्ख. ७. ९. लाख. ९. १. पभणेवि; ३. अपच्छर.
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