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३७. कृपण गृहिणी- संवाद [कर्त्ता : आसिग रचना समय : १२०० के पश्चात् ]
किवणु पभणइ 'निसुणि घरघरणि
करह
महुत्त
खज्जत तुट्टिसइ
वह अत्थु धरणिहि खर्णविणु ।
करि उवासु भुक्खी अछेविणु ॥ हिंड लिल्लिर-वेसि । ढुक्की कह वि म देसि ॥ १ किवणु पभणइ 'किम्व करउँ धम्मु
तंदुल संचह सत्रह
भण पहिय पाहुणा
अजय धणु थोडिलउ नितु ases नितु वेचियइ बिल्लं बिल्ला न वि मिलइ वरसह लेखउ जोइयउँ ताव बाली
'सिक्खवंती जम्मु गयउ जिव जम्मणु तिव मरणु धरणिहिँ थवियर वीसरइ जं जं दियह त ऊयरइ
कोपानलि घणि चडिउ सासु निलिय 'खरउ निविन्नउ धरणि तुहु हत् खंचि करि मेल धनु
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ताव कि वह लग्गु मणि रोसु
इक्क कोडि निट्ठाह पुज्जइ । विसु याहु न व हाउ खज्जइ (१) ॥ जाम्व न गणियउ गम्मु । खद्रा रोक्क वि द्रम्म' ॥ २ भइ विहसेवि
दंत घट्ट वलि वलि भणेविणु । करिसि काइ धणु कणु संचेविणु ॥ बचाव करतारु । मम्मल थियउ संसारु ॥ ३
जिव जलहरि जल पडद विहवि नडिउँ तं जिघरु सीलु म खंडि धनु त्रयसु जइ मारह तो मारि प्रिय
धगधगंतु रोसिहि पलित्तउ । वार वार पभणइ तुरंतउ ॥ जं धनु विलसहि खाहि । कय पुण पीहरि जाहि ॥४ नयणेहि
ताव बाली रुयइ
वह जेव निज्झरणि गिरि वरि । किवणि दिन्नु फल सुक्क तरुवरु || कुलह उजालि नाउँ ।
किवइ न पीहरि जाउँ ॥५
१. २. वित्त ५. अच्छे विणु. ६. संचयह. २. २. अजिय. ३. २. ४. ६. निव्वि; ७. खाहि. ५. ३. निझ; ७ उज्जा
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