________________
३६. महावीर-जन्माभिषेक [ कर्ता : जिनेश्वरसूरि रचनासमय : ११वीं शताब्दी ] सिद्धत्थ-महा-नरराय-वंस- सर-रायहंस मुणि-रायहंस । तेलुक्क-नाह युग-दीह-बाह जय चरम जिणेसर वीर-नाह ॥१ तुह मज्जणु जे जिण कुणहि भव्य ते पावहि संपइ नाह सच । उच्छिन्न-रुद्द-दारिद-कंद
पणयामर-विंद जिणिंद-चंद ॥२ सा धन्न पुन सु-कयत्थ वीर सिरि-तिसलदेवि जसु उयरि धीर । उप्पन्नु सयल-तेलुक्क-नाहु तहु गुण-गण-रयण-सलिलनाहु ॥३ सुर-सिहरि मिलिय चउसद्रि इंद। जम्म-कखणि तक्खणि तुह जिणिंद । केऊर-मउड-कडिसुत्त-हार- चल-कुंडल-मंडिय भत्ति-सार ॥४ निय-निय-विसेस-परिवार-जुत उल्लसिय-चारु-रोमंच-गत्त । खीरोहि-खीर-भर-परिएहिँ
सयवत्त-पिहाण-विभूसिएहि ॥५ मणि-कंचण-रयण-गण-निम्मिएहिँ कलसेहिँ विसाल-सुनिम्मलेहिं । तुह मज्जणु सज्जण-विहिय-तोसु पक्खालिय-कलि-मल-पडल-दोसु ॥६ कल्लाण-वल्लि-कय-परम-पोसु __ आगम-विहाणि करि वयण-कोसु । विरयंति सुरेसर सयल तत्थ संपुन्न पुन भावण कयत्थ ॥७ वर रंभ तिलुत्तम अच्छराउ नच्चंति भत्ति-भर-निब्भराउ । गायंति तार-हारुज्जलाई
तुह चरियइँ जिनवर निम्मलाई ॥८ वज्जति ढक्क टंबक्क बुक्क कंसाल ताल तिलिमा हुडुक्क । उपित इंत सुरवर-विमाण नह-मंडलि दीसहि पवर जाण ॥९ जय-जय-रवु के-वि करंति देव जोडिय-कर-संपुड करहि सेव । कि-वि अट्ठ अट्ठ वर-मंगलाई तुह पुरउ करहि कय-मंगलाइ ॥१० मन्नंति अप्पु सु-कयत्थु पुन्न तहिँ सयल सुराहिव सुकय-पुन्न । जं न्हविउ अज्ज सिरि-तिजग-नाहु निच्चविय-भविय-भव-दहण-दाहु ॥११ कल्लाण-वल्लि-उल्लास-कंदु तेलुक्क-परम-आणंदु चंदु । हल्लुप्फल-सुर-कय-नट्टरंगु जम्म-क्खणु तुह जिण जयउ चंगु ॥१२ जम्माहिसेउ कय-तिजग-सेउ भवियण-निन्नासिय-पाव-लेउ। तुह करहि देव-देविंद-विंद असुरिंद फणिंद स-जोइसिंद ॥१३ जेम मेरुम्मि अमरेसरा मजणं करहि तुह वीर गिरि-धीर दुह-तज्जणं । सद्ध सुवियड्ढ तह कुणहि जे संपयं सुत्त-विहि गाउ ते लहहि परमं पयं ॥१४
अंत : इति श्रीमहावीरजन्माभिषेकः कृतः श्रीजिनेश्वरसूरिभिः.
Jain Educationa Interational
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org