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________________ १२० नवहि मासहि सत्त-वासरह बिह पहरह तेरसिहि M कल्हार-कोमल-वयणु पुण वद्धाविउ वर विलय कंपिउ आसणु सुरवइहि अप्फालिउ घंट वर हरिसइ सवि जिणवरह सलहिवि तिसलह देइ वरु लेवि करंजलि वीर - जिपु तामं तक्खणि सक्क- वयणेण कर - कलिय- कंकण - रयण वर - विवि-मणिमय जय कप्पूरागरु-घण-घुसिण पडनित्त वर पत्त जय जय रव परिमल बहल वर तिवल दुलदुल करड मेरी-भरहर-पडु-पडहपूरिउ नहयलु सयलु तहि - वि सुरवर Jain Educationa International सुक्क पविश्व तहि चित्त-मासह | जाउ वीर सिद्धत्थ - रायह ॥ जानिय (?) भूसण लेवि । तखणि अवहि मुवि ॥ ६ कणिर-कंकण- कलयलाराव मिलिय तियस टंकार - सद्दिण | जम्मि भवणि गच्छइ खणणि ॥ 'अवसोयण तो तंमि । आयउ गिरि - सिह रंमि ॥७ प्राचीन गुर्जर काव्य संचय धावंत सायर-समुह उट्ठति कि-वि कि-वि करहि जय-जय-सद्दिण कि-वि अमर रोमंच किइ चुइय (?) तणु सुरवर मेरु - सिहरं मि चलण- चलिय- नेउर-सद्दिणं । मउड सिरि दिन्न चंदिण (?) ॥ परिमल - बहुल-विलित । पहिरवि सुर संपत ||८ सीह - नाउ दुंदुहि समुज्जलं (?) करयरंति उच्छलिय नदिण ॥ काहल - संख-सएहि । तक्खणि वज्र्ज्जतेहि ॥९ वारि-कमि लेवि कलस कलयल - ससद्दिण । सुरहि- कुसुम-मंदार-मंजरि ॥ नहयल - तल पुरंति । कि-वि सुंदरु नच्चति ॥ १० ताम चिंतs इउ निय-मणिण पिक्खे विणु वीर - जिणु वर वारि-निम्मल भरिउ तणु- सरीरि किन भरु सहे सइ । कणय-कलस- चउस िवसर || ७. १. स्क्क. ५. सोय, ९८. नहि. १०. ५, मंदार, १० सहिणि ६ ग्राहक For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003831
Book TitlePrachin Gurjar Kavya Sanchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Agarchand Nahta
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1975
Total Pages186
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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