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नवहि मासहि सत्त-वासरह
बिह पहरह तेरसिहि M कल्हार-कोमल-वयणु पुण वद्धाविउ वर विलय
कंपिउ आसणु सुरवइहि
अप्फालिउ घंट वर हरिसइ सवि जिणवरह सलहिवि तिसलह देइ वरु लेवि करंजलि वीर - जिपु
तामं तक्खणि सक्क- वयणेण
कर - कलिय- कंकण - रयण
वर - विवि-मणिमय जय
कप्पूरागरु-घण-घुसिण
पडनित्त वर
पत्त
जय जय रव परिमल बहल वर तिवल दुलदुल करड मेरी-भरहर-पडु-पडहपूरिउ नहयलु सयलु तहि
- वि सुरवर
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सुक्क पविश्व तहि चित्त-मासह | जाउ वीर सिद्धत्थ - रायह ॥ जानिय (?) भूसण लेवि । तखणि अवहि मुवि ॥ ६
कणिर-कंकण- कलयलाराव
मिलिय तियस टंकार - सद्दिण | जम्मि भवणि गच्छइ खणणि ॥ 'अवसोयण तो तंमि । आयउ गिरि - सिह रंमि ॥७
प्राचीन गुर्जर काव्य संचय
धावंत सायर-समुह उट्ठति कि-वि कि-वि करहि जय-जय-सद्दिण कि-वि अमर रोमंच किइ चुइय (?) तणु
सुरवर मेरु - सिहरं मि
चलण- चलिय- नेउर-सद्दिणं । मउड सिरि दिन्न चंदिण (?) ॥ परिमल - बहुल-विलित । पहिरवि सुर संपत ||८
सीह - नाउ दुंदुहि समुज्जलं (?) करयरंति उच्छलिय नदिण ॥ काहल - संख-सएहि । तक्खणि वज्र्ज्जतेहि ॥९ वारि-कमि
लेवि कलस कलयल - ससद्दिण । सुरहि- कुसुम-मंदार-मंजरि ॥ नहयल - तल पुरंति । कि-वि सुंदरु नच्चति ॥ १० ताम चिंतs इउ निय-मणिण
पिक्खे विणु वीर - जिणु वर वारि-निम्मल भरिउ
तणु- सरीरि किन भरु सहे सइ । कणय-कलस- चउस िवसर ||
७. १. स्क्क. ५. सोय, ९८. नहि. १०. ५, मंदार, १० सहिणि ६ ग्राहक
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