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३५. वीरजिन- कलश
नमिर- सुरवर-पवर - सिर-मउड. काय - कंति - सोहिय-ससुंदरु । दुट्ठ-कम्म- निवण-पच्च ॥ जम्मण - मरण-विणासु । भावं पणमिय तासु ॥ १
मणि-किरण-निम्मल-बहुल
संसार-वण-घण-दहण पंचिंदिय-करिवर-दलणु आइ-जिदिह पय-कमल
देवि सरसइ सरस- तामरस
वर - कोमल-दल- नयण
कढण उन्नय सिहण
तिहुयण- जण - आनंदयर जम्म- कालि जं जणु न्हवहु
वर-तुंग-तोरण-सहिउ अट्टाल- देउल-बहुल
नंदण-वण-वावी - सरहि
आसासिज्जइ तरुणियणु
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इत्थु भारहि नरु सुपसिद्धु
वर-राउ सिद्धत्थु हि करि-तुरय रहवर-भरिउ सयलंतेउर तसु पवर अतिथ घरिणि रइ - रूय-सम
काय - कंति - सोहिय-सुसुंदर । कसिण केस सिरि पउर दीहर
भावं पुणु पणमेव । संपय तं पयडेमि ॥२
विविह- रयण-धवलहर - सोहिउ । - - टिंट - चउहट्ट - रेहिउ || कुवलय-गंधे । आगच्छइ पवणेण ॥ ३
कुंडपुर-वर-नयरु नामेण
आसाढ पुप्फुत्तरह
उप्पन्नउ दियवर - कुलह सिण-पक्व तहि तेरसिहि
उत्तम कुलि जाणिव ठबहु
करइ रज्जु सय-नीय-कारणु । सत्तु वग्ग-भय-भीय- दारुणु || बहु-गुण-रण- निहाणु । तिसलाएवि पहाणु || ४ ||
तम्मि अवसर सुद्ध-छट्ठीहि M
विवि च सुर-रिद्धि-मणहर चवण महिम तसु करहि सुरवर आसोयह सुर - नाहु |
तिसल-गन्भि जिण - णाहु ॥ ५
श्रेष्ठ पाठ : १. १. सिरि. २. १. देव. ३. ७. कुवलइ. ४. ७. रय
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