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३४. युगादिदेव-कलश
जस्स पय-पंकयं निप्पडिम- रूवयं तस्स रिसहस्स भत्ती मज्जण-विहिं सुर-सि हरि मिलिय चउसट्ठि तह सुरवरा सयल - निय-निय-परीवार- परिवारिया रुप-मणि-कण - मीहि निव्वत्तिए लेवि कलसे कुणहि पढम-जिण - मज्जणं
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सुर-असुर-नर- खयर (?) वयंसीकयं । किं-पि पभणेमि तुम्हि कुणह सवणा तिहिं ॥ १ पवर-नेवत्थ-घर हरिस [ -भर ] -निम्भरा । फुल्ल- नयणंबुया विप्फुरिय-तारिया ॥२ इक्खुरस - खीर - घय- नीर- पूरं चिए । भत्ति-भर- परवसा कम्म-भड - तज्जणं ॥ ३
-वि गति गुलगुलहि किवि चामरा के वि वायंति ढालति कि-वि चामरा । का-वि नच्चति गायंति कि- वि देविया हरिस-भर- पूरिया मूसणालंकिया ॥४ विमलगिरि - मंडणं नाभि - निव-नंदणं जण-मणाणंदणं कम्म निक्कंदणं । तयनुसारेण भो न्हवहु भवियण-जणा सिव-बहू होइ जिम्व तुम्ह उच्छुय-मणा ॥ ५
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