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३३. सर्वजिन-कलश
जम्म-मजणु भणउँ उसमस्स । जिय-संभवमिणंदणहं सुमइ-सुपभ-सुप्पास-नाहह ।। ससि-सुविहि-सीयल-जिणह सिरि-सिजंस-जिण वासुपुज्जह ॥ विमल-अणंतह धम्म-मिण- संति-कुंथु-अर-मल्लि- । मुणि-सुव्वय-नमि-नेमि-जिण- पास-बीर-जिण-बल्लि ॥१
___ अमर-गिरिवर-सिहरि न्हाविसु । उवीस य तित्थयर (2) पढम-कप्प-सकंकि संठिय । सेवढ़ि-देविंद सुर अच्चुइंद-पमुहा महडिय ॥ .. मणिमय-मट्टिय-कणगमय- संजोगय (:)-कलसेहि । इक्खु[य]-रस-खीरबु-पय- जलहितो भरिएहि ॥२
तयणु संठियचुयइ कम्पिदु । उच्छंगि सम्वे वि जिण न्हवइ पढम कप्पिंदु वेगिण । सिय-वसह-सिंगुच्छलिय- ललिय-दुद्ध-धारा-पबंधिण ॥ धाविवि मज्जण-जलु अमर अमरी वि हु वंदंति । के-वि देव चामर पवर जिण-पुरओ ढालंति ॥३
के-वि नच्चहि के-वि गायति । कि-वि जय-जय-रवु करहि कि-वि विसट्ट नट्टइ पवहि । कि-वि खिल्लहि कि-वि उल्ललहि कि-वि रसंति कि-वि हसहि विलसहि ॥ कि-वि गजहि कि-वि गुलगुलहि कि-वि उच्छाह पढंति । ढक दुक्क त्रंबक तहि कि-वि झल्लरि वायंति ॥४
तयणुगारिण सव्व भो भव्व ।। अप्पुव्व-वत्थाभरण- भूसियंग मण-रंग-चंगय । माणंद-बाह-प्पवह- न्हविय-गल्लया पुलय-संगय ॥ करह सव्व तित्थेसरह मज्जण-महु बहु-सेउ । सिवपुरम्मि तुम्ह वि हवइ जिवँ लहु रज्जभिसेउ ॥५
भ्रष्ट पाठः ३. २. उत्संगि; ६. गज्जणु. ९. ढालिति. ४. ३. पवट्टइ, ६. हसह विलसइं. ५.७ मज्जणु, °सेय. ८ भवइ.
मंत : इति सर्वजिनकलशः समाप्तः.
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