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अंबिकादेवी-पूर्वभव-वर्णन तलहारा
अंबिणि दीठउ कूवउ मग्गि, तक्खणि मणि जिणु अणुसरिउ । तत्थ झंपावइ पाण-विसग्गि, सुह-झाणि जीविउ तजिउ तिणि ॥१७ कूवह माँडि विमाणि उपन्न, सोहम-तलि चहु जोयणिहि । सोपात्र-दानि प्रभावि उपन्न, अंबिक-देविय नामि तउ ।।१८ अंबिणि तजिय जि पातलि वि, सोवन थाल कचोल थिय । अउठिहि कण पुणु पडिय जि-के-वि, मोतिय माणिक ते-वि हुय ।।१९ सासुव देखिवि विम्हिय ताम, चिंतइ वहुय सलक्खणिय । मण पछताविय जंपइ सोमु, अणहि व्यालउ तउ करउ ॥२० सोमु महासइ पूठिहि जाइ, कूवि झंपावती दीठ तिणि । सो पुणु अणुसइ तहिं धस देइ, मरिवि हुवउ सिंह-रूपि सुरु ॥२१ अंबहँ लुंबिय पासु धरेइ, दाहिण करि जुगि वाम पुणु । पुत्त-अंकुस-धर सिंह-वाहणिय, वंछिय-पूरणि कनय-वन्न ॥२२ सामिय नेमि-जिणिंदह तित्थि, अंबिक सासणि-देवि हुय । संघहँ दुत्थ-दलणि सु-पसस्थि, निवसइ गिरि-गिरनार-सिरि ॥२३ सीसि मउडु मणि-कुंडल कानि, सोहइ मोतिय-हारु उरि । रयण-घडिय करि कंकण दुन्नि, पाइहि नेउर रुणझुणहि ॥२४ तुहुँ तारा तोतर भैरव चंडि, सोलस विज्जादेवि तुहुँ । एक जि तिहुयणि तुहुँ जु पयंडि, भयवइ वहुविह रूव-धरा ॥२५ साइणि जोइणि रक्खस भूय, वितर दुद्धर दुट्ठ गह । नाम-गहणि तुह विफलोइय, वंदिहि सकल झडप्पडहि ॥२६ तम्ह पसाइहि तुम्ह (?) थट्ट, रहवर पयदल रायसिरि ।
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