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२९. नेमिनाथ-बोली
जगति जयति शश्वन्नेमिनाथो विवस्वच्छतसमधिककांतिः सृष्टमोहोपशान्तिः । उदितविदितचित्रस्फूर्जदूश्चरित्रस्त्रिभुवनजनबन्धुः पुण्यलावण्यसिन्धुः ॥१ त समुदविजय-निव-अंगरुहं त पुन्निम-सोम-समाण-मुहं । त राजमती-राणी-हियय-वरं त धरिय-सुदुद्धर-सील-भरं ॥२ ता जय-पायड-नव-संख रवं ता दूर-वियंभिय-सं ख-रवं । ता अरि अरि भवियहु रत्तिदिणं ता पणमुहु पणमुहु नेमि-जिणं ॥३
ता एका-चित्ता होई मित्ता पढि सुह-कव्वु । ता एऊ लोऊ करिउ पमोल . संभलहु सव्वु ॥ ता सिवपुरि-गामिउ जिव जिव सामिउ सामल-धीरु । ता तिहुषुयण-रंजणु मयणहू गंजणु एकल-वीरु ॥४ ता इह संसारी दुत्तर-पारी दुह-भंडारि । ता इक्कल-मल्ला तिहुयण-सल्ला राणा च्यारि ॥ ता रिद्धिहि गहिलउ सिविहि पहिलउँ पहिलउँ क्रोधु । ता जण-जण-सरिसउ अइ दुद्धरसउ । करइ विरोधु ॥५ आ अइदुतू (?) बह-बलवंतू बीजउ माणु । कि स्यू (?) न नमइ सव्वू नामइ अखलिय-आणु ॥ ता पारू वंचइ पापू संचइ त्रीजउ दंभु। ता जग्गू हस्सय नहु वीसस्सइ उखभिय-खंभु ॥६ ता सव्वू मोहइ जग्गू डोहइ चउत्थउ लोभु । ता धम्मू नासइ साहू वासइ खरउ आथोभ ॥ ता तहि गुरुयउ कम्महि विरुयउ धम्महि । अच्छइ मोह। ता राए राणे सव्वेसाणे किणइ दुजोह ॥७ ता अवरे अच्छइ मागिं गच्छइ चारि नरिंद । ता देवादेवा ताहिं सेवा करहि सुरिंद ॥ ता पूरइ भोगू दियह संजोगू पहिलउ दाणु । ता जइ पुण जोई बूझइ कोई तासु पमाणु ॥८
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