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प्राचीन गुर्जर काव्य संचय
अज्जवि जइ जाएसि प्रिय, तउ दुख मेरु - समानु । कइ मुह ही डउ फुट्टि सिई, कइ उडिसीइ प्रानु ॥ २॥ रमणि संभलि २ भणइ नरुनाहु
राजु छंडि मई ऋतु लीयउ, व्रत मेल्हिवि गृहवासु किद्धो । हुं तो तसु जामलि हुउँ, जिसउँ लोहु घण-तंब किद्धो
मित्तु अम्हारउ राजगृह, नयरि जि अभयकुमारु । लिद्धो मिल्हियो जाणिसिइ, सो अम्ह संजम - भारु || ३ || देव दुहिलउ २ म धरि अवधार
बंध अभयकुमार तसु, राजु छंडि व्रत तीणि लिद्धऊ । विहरंतर वेस - घरि गयऊ, अहंकार - रसि सो जि लिद्धउ ॥ विषइ रमइ देसण करहूँ, दिनि दस प्रतिबोधे । नंदिषेण मुनि नाम तसो, निधा कोइ न करेइ ॥४॥ म भणि सुंदरि २ एउ दृष्टंतु
पुव्व भवंतर संभरै, तेम तेम मुह दुक्खु हल्लई ।
जर - रक्खसि दलि दोरि सिउँ, अज्ज-कल्लि अम्ह-भणीय चल्लाई || तामु सुनंदा इम भइ, वर विन्नती सुणेऊ ।
बेटउ लेसालहँ ठवीउ, पच्छइ व्रत लेजेउ ॥५॥
तीण वयणिहि २ रहीउ नरनाहु
अंगुलि गिणते दीहडे, च्यारि वरिस वोलीयाँ क्रमि क्रम । पुतु ले सालहुँ परिठवीउ, छडपडु मणु आणंतु उपशमि ॥ कंतु गमंतु जाणि करि, कत्तण- लग्ग नारि । रमतु रमन्तउ बेटडऊ, सो जि संपत्तउ बारि ॥६॥
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आपण घरि किछउँ कातणउँ ए ।
जायसिह वाछ तूय तात, तू वडउ नेसालीयउ ए अखईउ होइजे वाछ, मइ भलइ संभालीउ ए ॥१ जायसि वच्छ तूय किम जायसि एब । धुला मोह ने पासि, तँ, वडउ लेसालीउ ए । तात लडाव तूय तोतला ए, हुं बलिकीजिसो नाम, तूं वडो ले सालिउ ए ॥२ वारउ ताँतण वीटीया ए, बार के सांकल भार, तू वडउ लेसालिउ ए । बारसोत्र जणणि तणाँ ए, छूटउ बारि जे त्रागि, तू वडउ लेसालिउ ए ॥ ३
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