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२७. आर्द्रकुमार-धवल
[कर्ता-देपाल
रचना - समय : १५वीं शताब्दी]
नाई ए नयरह सीहहुयारि, पांच कन्या रामति रमइँ ए । चिहु पुण वरी या भ च्यारि, वरु नवि पामइ पाँचमी ए ॥ वावि चरखंडि ए च्यारि, जे थंभ चिहुँ कुयारि रुपि निरूपम जेसीय रंभ, घणवत्त- धूय तेहे खोजवीय धणदत्त-धूय, बोलिया बोल बहूय । अम्हि थंभ वरी या तो, तूं वरु अनेरउ जोइ ॥ २
तूं वरु अनेरुउ जोइ सखि ए काँइ कर आगलि रही । ऊभी पिराया प्रीँ जोयति बहिनी मनि लाजइ नहीँ ॥ रामति फीटी हूउ झगडउ नयणि जलि झखोलिया । सवि राखी मेल्ही वावि पाखलि भमइ भंभर - भोलिया ॥ ३ भंभर- भोलिय नयण - विशाल, वर जोइ धण एकली ए । वावि पाखलि परिभमईं स बाल, मुनि लाधउ कासगि रहियउ ए ॥
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च्यारह ग्रहिया ए ।
वीजवी ए ॥१
लगन - वेलाँ गोधूक - वारि, आणी थंभ ए पाँचमु ए । कासग रही उ ए आद्रकुआरु, वरु वरी उ अणजाणती ए ॥४ वरु वरिउ अबुहि अयाणि, ते वात चडी प्रमाणि । जाणीं एहूं थंभ, शृंगार प्रथमारंभ ॥५ पेखिय आपुलइ मनि गहगही । वीजवो हूंती जेहिं ति सवि बोलावी सही ॥ साँभलउ बाईउ वात साची माहरइ कर्मि आणीउ ।
हूं नहीं मेल्हउँ नहीं मेल्हउँ न मेल्हऊँ नर जाणीउ ॥ ५
to जाणी ओत भणी यउँ तीण, सहोय समाणी ए साँभलउ ए । आपणपइ सवित सुकुलीणी, वरियउ वरु नवि मेल्हियइ ए ॥ ७ जय जयउ जंपइ सासण - देवि अहिवि सूहवि होइजे ।
वाँछितू ए सुरवर वृष्टि करइ तीण खेवि कंचण सारध बार कोडि ॥ माय-ताय- सिउँ पहूतउ राय, नयरलोउ सहु बूझवइ ए नारि न मेल्हइ मुनिवर-पाय, मुनिवरु मुखि बोलह नहीँ ए ॥ ८
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