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________________ प्राचीन गुर्जर काव्य संचय जीव अभउ कर दीन्हउ जेण सत सारथि किउ धम्म धुरेण । साहसु पुरिसु सखाइउ धरिउ जपु तपु संजमु व्रतु अणुसरिओ ।। दृढ मनु व्रतु निश्चलु धरिओ राज रयणु परिहरिउ भंडारू । कुमरि तजिय जिणि रायमए ध्यानि रहिउ व्रतु नेमिकुमारो ॥१४ जो जादव-कुल-मंडण-सारो जिणि तिणि चडि परिहरिउ संसारो कुमरि तजिय तपु लउ गिरनारे सिधि परिणउ गउ मोख-दुवारे ॥ जणु परिमलु पाल्हणु भणए तसु पय अणुदिण भत्ति करेहु । मण-वंछिउ फल पाविजए धुय-समसरिसु वयणु फुड्ड एहू ॥१५ इणि परि भणिया वारस मास पढत-सुणंतहँ पूजउ आसा । रायमइ नेमिकुमर वहु चरिउँ संखेविण कवि इणि परि कहिउ ॥ अंबिकदेवि सासणदेवि माई संघ-सानिधु करिजउ समुदाई ॥ * अंतः इति श्रीनेमिनाथस्य द्वादशमासवर्णन समाप्तम्, Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003831
Book TitlePrachin Gurjar Kavya Sanchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Agarchand Nahta
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1975
Total Pages186
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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