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२५. कयवन्ना-विवाहलउ [कर्ता-देपाल रचना-समय : १५ वीं शताब्दी] भणइ कयवन्नउ अभयकुमारू, एक अपूरब वातडी ए। च्यारिए नारि एह नयर-मझारि, च्यारि ए बेटा अम्ह-तणा ए ॥१॥ एकु ताँ एहु जु वडउँ विना], जेहु जणावउँ तेउ हसइ ए । हउँ नवि जाणउँ तेह-तण नामु, न अहिनाणु न धवलहरो ॥२॥ सुपन-सारीखिय साचिय वात, निशिदिन घडीय न वीसरइ ए। अवरह माणस केहिय मात्र, हउँ भूलउ हउँ भोलविउ ए ॥३॥ राउलि कहउँ न लागए राव, कहउँ तउ कोइ मानइ नही ए। बुद्धि-मयरहर तुं बिरद बोलाव, जाणिसिइ बुद्धि तुम्ह-तणी ए' ॥४॥ जाणिउँ कारण-तणउ विचारु, श्रेणिक-संभम इम भणइ ए। तउ कयवन्ना अभयकुमार, 'सयल कुटंब जउ मेलवउँ ए' ॥५॥ जिसउ कयवन्नउ तिसउ जाखु, अनुपम मूरती लेपमी ए। हरखिहि वेचिउ सोवन्न लाख, अभयकुमार कराविउ ए ॥६॥ कंचण-रयण-तणउ सिणगार, नवल पटोला पहिरणइ ए । रूप अप्रब अतिहि अपारु, जीण. जग सहु मोहीउँ ए ॥७॥ चउ-बारउ चहुटइ प्रासादु, राजगृहे रुलियामणउ ए । नयरह माँहि पडाविउ साद, पडहु वजावउ घरिहि घरे ॥८॥ आवउ वेगिहिं सहु सुकुटंबु, पंच मोदक जण जण प्रति ए। राखे करिसउ कोइ विलंबु, जाखु जुहारउ विधन-हरो ॥९॥ जाणिउ जावह तणउ-पमाणु, घरि घरि मोदक नीपजइ ए। एवड बुद्धि-तणउ परमाणु, अभयकुमारि कराविउँ ए ॥१०॥ एकि भणइँ परमेसर जाख, लाडूय देसु हूँ अति घणा ए । जे अम्ह रोगह आगलि राख, तउ तउँ सामीउ अम्ह तणउ ए ॥११॥ एकि नाचिइ एकि गाइँ गीतु, हरिखिहि कवि देपाल जिम । इण परि जाखु जु हुयउ वदीतु, मंगल-कारउ मगध-देसे ॥१२॥
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