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नेमिनाथ चतुष्पदिका
'जुइ, सखि ! मातउ मासु वसंतु इणि खिलिज्जइ, जइ हुइ कंतु । रमियइ नव नव करि सिणगारु लिज्जइ जीविय-जुव्वण-सार' ॥२७ 'सुणि, सखि ! मानिउ मुझु परिणयणु नवि ऊवरि थिउ बंधव-वयणु । जइ पडिवन्नइ चुक्कइ नेमि जीविय जुव्वणु जलणि जलेमि' ॥२८ व इ सा ह ह विहसिय वण-राइ मयण-मित्तु मलयानिलु वाइ । 'फुट्टि, रि हियडा !' माझि वसंतु विलवइ राजल पिक्खिउ कंतु ॥२९ सखी दुक्ख वीसरिवा भणइ 'संभलि, भमरउ किम रुणझुणइ । “दीस पंच थिरु जोवणु होइ खाउ, पियउ, विलसउ सहु-कोइ" ॥३० रमणि पसंसइ राजल-कन्न 'जीह कंतु वसि, ते पर धन्न । जसु प्रिउ न करइ किमइ मुहाडि सा हउँ इक्क ज भुंड-निलाडि' ॥३१ जि टू विरहु जिम तप्पइ सूरु घण-विओगि सुसियं नइ-पूरु । पिक्खिउ फुल्लिउ चंपइ-विल्लि राजल मूछी नेह-गहिल्लि ।।३२ 'मूछी राणी, हा सखि ! धाउँ पडियउ खंडइ जेवडु घाउ' । हरिय मूछ चंदण-पवणेहिं सखि आसासइ प्रिय-वयणेहि ॥३ भणइ देवि 'विरती संसार पडिखि पडिखि मइ, जादव-सार । निय-पडिवन्नउँ, प्रभु ! संभारि मइ लइ सरिसी गढि गिरिनारि' ॥३४
आ सा ढ ह दिदु हियउँ करेवि गज्जु विज्जु सवि अवगन्नेवि । भणइ वयणु उग्रसेणह जाय 'करिसु धम्मु, सेविसु प्रिय-पाय' ॥३५ मिलिउ सखी राजल पभणंति 'चिणय जेम न मिरिय खजंति । अउगी अच्छि, सखि ! झखि मन आल तपु दोहिल्लउ, तउँ सुकुमाल' ॥३६ 'अठ भव विलसिउ प्रियह पसाइ किमइ जीवु, सखि ! सुख[ह] न धाइ । हिव प्रिय-सरिसउँ जोविय-मरणु इण भवि पर-भवि निमि जु सरणु' ॥३७ अ धि कु मा सु सवि मासहि फिरइ छह-रितु-केरा गुण अणुहरइ । मिलिवा प्रिय ऊबाहुलि इय सउ मुकलाविउ उँग्रसेण-धूय ॥३८ पंच सखी-सइ जसु परिवारि प्रिय-ऊमाही गइ गिरिनारि । सखी-सहित राजल गुण-रासि लेइ दिक्ख परमेसर-पासि ॥३९॥ निम्मल केवल-नाणु लहेवि सिद्धी सामिणि राजल-देवि ।। रयणसिंह-सूरि पणमवि पाय बार-इ मास भणिया मइ, भाय ! ॥४०
नेमि-कुमरु सुमरवि गिरनारि । सिद्धी राजल-कन्न कुमारि ॥
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