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गुर्जर काव्य संचय इमइ इसि सनेहल नारि जाइ कोइ छंडवि गिरनारि ?' ॥१२ 'कायर किम,सखि ! नेमि-जिणंदु जिणि रिणि जित्तउ लक्खु नरिंदु । फुरइ सासु जा अग्गलि नास ताव न मिल्हउँ नेमिहि आस' ॥१३ म ग सि रि मग्गु पलोअइ बाल इण परि पभणइ नयण-विसाल । 'जो मइ मेलइ नेमि-कुमार तसु णीवेल(?) वहउ सवि-वार' ॥१४ 'एहु कदाग्रहु तर, सखि ! मिल्हि करिसि काइ तिणि नेमिहि, हिल्लि ! मंडि चडाविउ जो किर मालि "हे ! हे !" कु करइ टोहण-कालि ?' ॥१५ । 'अठ भव सेविउ, सखि ! मइ नेमि तसु ऊमाहउ किम न करेमि । अवगन्नेसइ जइ मइ सामि लग्गी अछिसु तो-इ तसु नामि ॥१६ 'पो सि रोस सवि छंडिवि, नाह ! राखि राखि मइ मयणह पाह । 'पडइ सीउ, नवि रयणि विहाइ लहिय छिद्द सवि दुक्ख अमाइ' ॥१७ "नेमि ! नेमि !" तू करती, मुद्धि ! जुव्वणु जाइ न जाणिसि सुद्धि । पुरिस-रयण-भरियउ संसारु परणि अनेरउ कुइ भत्तारु' ॥१८ 'भोली तउ, सखि ! खरी गमारि वरि अच्छंतइ नेमि-कुमारि । अन्नु पुरिसु कुइ अप्पणु नडइ ? गइवरु लहिउ, कु रासभि चडइ ?' ॥१९ मा ह मा सि माचइ हिम-रासि देवि भणइ 'मइ, प्रिय ! लइ पासि । तइ विणु, सामिय ! दहइ तुसारु नव-नव-मारिहि मारइ मारु' ॥२० 'इहु, सखि ! रोइसि सहु अरन्नि हत्थि कि जामइ धरणउ कन्नि ? । तउ न पतीजसि, माहरी माइ ! सिद्धि-रमणि-रत्तउ नमि जाइ' ॥२१ 'कंति वसंतइ हियडा-माहि वाति पतीजउँ किम, हलसाइ । (? हि) सिद्धि आइ तउ काइ त बीह सरसी जाउ त उग्रसेण-धीय ॥२२ फा गुण वा-गुणि पन्न पडंति राजल-दुक्खि कि तरु रोयंति ? । 'गब्भि गलिवि हउँ काइ न मूय !' भणइ विहंगल धारणि-धूय ॥२३ 'अजिउ भणिउ करि, सखि ! विम्मासि अछइ भला वर नेमिहि पास । अनु, सखि ! मोदक जउ नवि हुँति छुहिय सुहाली कि न रुच्चंति ? ॥२४ 'मणह पासि जइ पहिलउ होइ नेमिहि पासि ततलउ न कोइ । जइ, सखि ! वरउँ त सामल-धीरु घण-विणु पियइ कि चातकु नीर ? ॥२५ चैत्र मा सि वणसइ पंगुरइ वणि वणि कोयल टहका करइ । पंचबाण करि धनुष धरेवि वेझइ मांडी राजल-देवि ॥२६
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