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________________ सिरि-धूलिभद- फागु Jain Educationa International लवणिम-रस-भरि कूवडिय जसु नाहिय रेहइ । मयण-राय किरि विजय - खंभ जसु ऊरू सोहइ ॥ जसु नह-पल्लव कामदेव - अंकुस जिम राजइ । रिमिझिमि रिमिझिमि पाय - कमलि घाघरि यसु वजइँ ॥१५ नव-जोवण-विलसंत-देह -- हल्ली परिमल - लहरिहिं महमहंत रइ-केलि पहिल्ली ॥ वर-चंपा - वनी । परवाल-खंड हाव-भाव - बहुरस - संपुन्नी ॥ १६ जउ आविय मुणि- पासि । सुर- किन्नर आकासि ॥ १७ अहर - बिंब नयण- सलूणीय * सिंगार करेविरु जोवा कउतिग मिलिय * [पंचम भास] अहे नयण कडक्खिहि आहणए वाँकउँ जोवंती । हाव-भाव-सिंगार-भंगि नव-नविय करंती ॥ तह - वि न भिज्जइ मुणि-पवर तर वेस बोलावइ । 'तवण- तुल्लु तुह विरह नाह मह तणु संतावइ ॥१८ बारहँ वरिसहँ त हु किणि कारणि छंडि । एवड्डु निठुरपणउँ काइँ मू- सिउँ तुम्हि मंडिउ ' ॥ थूलभद्द पभणे 'वेस अइ-खेदु न कीजइ लोहिण घडियउँ हिउँ मुज्झ तुम वयणि न भीजइ ॥१९ 'मह विलवंतिय उवरि नाह अणुरागु धरीजइ एरिसु पावस- कालु सयलु मू- सिउँ माणीजइ' ॥ मुणिव जंपर 'वेस ! सिद्धि-रमणी परिणेवा | लउँ संजम - सिरीहि सिउँ भोग रमेवा ॥ २० For Personal and Private Use Only .९१ www.jainelibrary.org
SR No.003831
Book TitlePrachin Gurjar Kavya Sanchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Agarchand Nahta
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1975
Total Pages186
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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