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प्राचीन गुर्जर काव्य संचय सीयल कोमल सुरहि वाय जिम जिम वायंते । मान-मडप्फर माणणिय तिम तिम नासते ॥ जिम जिम जल-भर-भरिय मेह गयणंगणि मिलिया । तिम तिम पंथिय-तणा नयण नीरिहि जलजलिया ॥८ मेहा-रव-भरि ऊलटिय जिम जिम नाच. मोर । तिम तिम माणिणि खलभलइँ साहीता जिम चोर ॥९
[तृतीय भास] अह सिंगारु करेइ वेस मोटइ मन-ऊलटि । रयइ अगि बहु-रंगि चंगि चंदण-रस-ऊगटि ॥ चंपक-केतक-जाइ-कुसुमि सिरि खूप भरेई । अति-अच्छउँ सुकुमाल चीरु पहिरणि पहिरेई ॥१० लहलह-लहलह-लहलहए उरि मोतिय-हारो। रणरण-रणरण-रणरणए पगि नेउर-सारो ॥ झगमग-झगमग-झगमगए कानिहि वर-कुंडल । झलहल-झलहल-झलहलए आभरणहँ मंडल ॥११ मयण-खग्गु जिम लहलहए जसु वेणी-दंडो। सरलउ तरलउ सामलउ (?) रोमावलि-दंडो ॥ तुंग पयोहर उल्लसइ [जिम] सिगार-थवक्का कुसुम-बाणि निय अमिय-कुंभ किर थापणि मुक्का ॥१२ काजलि अंजिवि नयण-जुय सिरि सइँथउ फाडेई । बोरी यावडि-कंचुलिय पुणि . उर-मंडलि ताडेई ॥१३
[चतुर्थ भास] अहे कन्न-जुयल जसु लहलहंत किर मयण-हि डोला । चंचल चपल तरंग-चंग जसु नयण-कचोला ॥ सोहइँ जासु कपोल-पालि जणु गालि-मसूरा । कोमलु विमल सु-कंटु जासु वम्मह-सँख-तूरा ॥१४
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