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२१. सिरिन्थूलिभह-फागु [रचना-समयः १३००-१३५० कर्ता-जिनपभसूरि] पणमिय पास-जिणिंद-पय अनु सरसइ समरेवी । थूलिभद्द-मुणिवइ भणिसु फागु-बंधि गुण के-वी ॥१
[प्रथम भास अहे सोहग-सुंदर रूववंतु गुण-मणि भंडारो। कंचण जिम झलकंत-कंति संजम-सिरि-हारो ॥ थूलिमद्द मुणि-राउ जाम महियलि बोहंतउ । नयरराय-पाडलिय-नयरि पहुतउ विहरंतउ ॥२ परिसालइ चउमास-माहि साहू गहगहिया । लियइ अभिग्गह गुरुह पासि निय-गुण-महमहिया ॥ अज्ज-विजयसंभूइ-सूरि गुरु-वर मुकलाविउ । तसु आएसि मुणीसु कोस-वेसा-घरि आविउ ॥३ मंदिर-तोरणि आवियउ मुणिवरु पिक्खेवी । चमकिय चित्तिहि दासडिय वेगि जाइ वधावी ॥ कोसा अतिहि ऊतावलिय हारिहि लहकंती। आविय मुणिवर-राय-पासि करयल जोडती ॥४ 'धम्म-लाभु' मुणिवइ भणवि चित्रसाली मागेवी । रहियउ सीह-किसोर जिम धीरिम हियइ धरेवी ॥५
द्वितीय भास] अहे झिरिमिरि झिरिमिरि झिरिमिरि ए मेहा वरिसंते । खलहल खलहल खलहल ए वाहला वंहते ।। झबझब झबझव झबझब ए वीजुलिय झबक्का । थरहर थरहर थरहर ए विरहिणी-मनु कंपइ ॥६ महुर-गंभीर-सरेण मेह जिम जिम गाजते । पंचबाणु निय कुसुम-बाण तिम तिम साजते ॥ जिम जिम केतक महमहंत परिमल विहसावइ । तिम तिम कामिय चरण लग्गि निय-रमणि मनावइ ॥७
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