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प्राचीन गुर्जर काव्य संचय नारीय-कुंजरु मेल्हिवि जोयए छाडिए खाल ॥४४ धरणिंदह पायालिहि पुहुविहि पंडिय-लोउ । ___x x x x xx xx जीतउँ जीतउँ इम भणइ सम्गिहि सुरपति इंदु ॥४६ वद्धावणउँ करावए सिग्गहि जिणसर-सूरि ।
x x x x x x x x गुजरात-पाटण भल्लई सयलहँ नयरहँ माहि ॥४८ मालवा-की बाउल भणहि सयलहँ लोयहँ माहि ।
xx xx xx xx सिरि जिणचंद-सूरि फागिहि गायहि जे अति भावि । ते बाउल अरु पुरुसला विलसहि सिव-सुह सावि ॥५०
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