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प्राचीन गुर्जर काव्य संचय
भrs को 'साउँ किउँ "नवलंइ राचइ लोड" ।
मू मिलिहवि संजम - सिरिहि
जउ रातउ मुणि-राउ' ॥२१ [ षष्ठ भास
अहे उसम-रस-भर- पूरियउ (?) रिसि-राउ भणेई । 'चिंतामणि परिहरवि कवणु पत्थरु गिन्हेई ॥ तिम संजम - सिरि परिचएवि सुर - इंदु- समुज्जल । आलिंगइ तुह, कोस ! कवणु पसरंत महाबल' ॥२२ 'पहिलउँ हिवडा' कोस कहइ 'जुव्वंण - फलु लीजइ । तयणंतरु संजम - सिरीहि सिउँ सुहिण रमीज ' ॥ मुणि बोलइ 'जं मइँ लियउ तं लियउ जि होइ (?) । कवणु सु अच्छइ भुवण- तले जो मह मणु मोहइ' ॥२३ इणि परि कोसा अवगणिय थूलभद्द - मुणिराइ । तसु धीरिम अवधारि करि चमकिय चित्ति सुहाइ ॥२४
[ सप्तम भास]
अइ- बलवंतु सु मोह-राउ जिणि नाणि निधाडिउ । झाण- खडग्गिण समरंगणि पाडिउ ॥
मयण- सुहड
कुसुम-वुट्ठि सुर करइ तुट्ट तह जयजय - कारो 'धनु धनु एहु जु थूलिभद्दु जिणि जीतउ मारो' ||२५
पडिबोहिवि तह कोस वेस चउमासि - अनंतरु
गुरु-पासि मुणीसरु ॥
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सूरिहि सु पसंसिउ
नमंसिउ ॥ २६
पालि अभिग्गह ललिय-वलिय 'दुक्कर- दुक्कर- कारगु' त्ति संख- समुज्जल- जस-लसंतु सुर-नरिहि नंदउ सो सिरि-धूलिभद्दु जो जुगह पहाणो मलियउ जिणि जग मल्ल सल्ल - रइवल्लह - माणो ॥ खरतर -गच्छि जिणपदम - सूरि-कीउ फागु रमेवउ खेला नाचइँ
चैत्र - मासि
रंगिहि
गाएवउ ||२७
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