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प्राचीन गुर्जर काव्य संचय
रागु अति-न कीजइ. दिघम काइ खीजइ, प्रेम-परवसपणइ देहु दाझइ । गंध-गुणि रातउ, फल-रसि मातउ, भमरडउ कमल-वनि जोइ बाझइ ॥१४॥राग० पर-कलत्र देखी, जणणि-जिम लेखी, स्वदार-संतोषु करि बूझि बूझि । दिघम-कुल गाजइ, जस पडहु वाजइ, सील-जलि सूझि तूं मम म मूझि ॥१५ वयणि तिणि भीजउ, दिघमु मनि पतीजउ, धनु धनु बहिनि तू इम खमावइ । शबरि-ने पाइ लागइ, आ[सी]सु तव मागइ, वलिउ नर-नाहु निय-नयरि आवइ ॥१६*
* अंत : इति दिघमशबरीभास समाप्तः.
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