________________
२०. दिघम - सबरी - भास
गय-गमणि बाली, मयणची आली, दिघमि निय- नयणुले वनि निहाली । नयण-रसि रसाली, राय-नी हीयाली, कुसुमसर- पसिरि हुई ( ? ) पराली ॥ १ राग-रसि राच, विषय - मदि माचइँ, भमइ संसारि ते जीव साचइँ | पर-रमणि ईहइँ, नरक न बीहइँ, दिघम ते कुंभीय- पाकि पाचइँ ||२||ओ०
सवियणि- गूत, नेह-कलि खूतउ, रंगि निरखइ निखूतउ । पासित पहुतउ, मोह-भरि जूतउँ, सांभरि भोलीय विभ्रमि भूतउ || ३ || राग ० भणइँ नेहल-वयणि, तूं कवण मृग - नयणि, अमृत- सम-वयणि, भमि काँइँ वणि । रूपि जिम सुर-रमणि, वेस अनेसउ पणि, बोलि न समाइँ अम्ह एहु मणि ॥ ४ ॥ राग ० कहइ इम नारी, वसउँ गिरि- मझारी, पहिरणि पान ए परि अम्हारी । भील बहुआरी, वालंभि वारी, फिरउँ फल-काजि हुं भोलुयारी ||५|| राग ० राइ इम जाणी, भील-की राणी, मयण-नी आण मन - माँहि आणी । भणइ इय वाणी, करउँ पटराणी, मेल्हि वनु जोइतूं राजु माणी ॥ ६ ॥ राग ० पहरि रलीयाली, जादर - फाली, कूर- कप्पूर-रसु जोइ न बाली । मूँकि वनु टाली, भीलु अनु हाली, दिघमु आदरि म सुंदरि विमाली ॥७॥राग० दिघम इकु जाणउ, भोग म-न वखाणउ, एकु जि अम्ह मनि भील-राणउ । राजु तहि माण, बोल एउ जाणउ, अवरु नवि राउ राणउ ॥ ८॥ राग ० धउलहरि वासउ, सबरि तम्हि विमासउ, दिघमु राजा न कीजइ निरासउ । धउलहर वरासउ, नरक नवि सांसउ, भीलडी भणइ मन भयु विणासउ || ९ || राग ० नरक भयु आछइ, तरणि ते पाछइ, मयण-भडु आज मूं-ऊपरि काछउँ सहूउ सुख वाँइ, कालु पुण ताछइ, गलइ जीउ जेम जलु चीरि आछइ ॥ १० कुसुमसरु जागइ, कहिउ किम लागइ शबरि तइ प्राणिहि दिघमु मागइ | म कहि इम राया, अरिरि भव- माया, प्राणि नवि नेहु इहु कहिउ आगई ॥ ११ शबर भो लामी, वात आंतरामी ( ? ), प्राणु नवि माणु नवि गिणइ कामी । दिघम तूं सामी, राय- धूय पामी, शबरि-सिनेह-नी दिसि जि लामी ॥ १२ ॥ राग ०
रहि न रहि वारिउ, न सहइँ एउ विचारिउ, अलप - काजिं तूय कुणि वियारि । विसय-विषि घारिउ, मोह-भरि भारिउ, दिघम तइँ आपुल जनमु हारिउ ॥ १२ ॥ राग ०
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org