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________________ १८. धर्म-चच्चरी सुमरेविणु सिरि-वीर-जिणु पभणिसु सावय-धम्मु । जे आराहइ इक्क-मणि सो नर पावइ सम्मु ॥१ जो उटुंतउ पह-समइ चित्ति धरइ नवकारु । मुत्ति-नियंबणि-वच्छयलि विलसइ सो जिम हारु ॥२ साइणि डाइणि जोइणिय गह-रक्खस वेयालु। ताह न पहवइ जे सरइ पण-परमिट्ठि ति-कालु ॥३ कल्लाणावलि-वल्लरिय- पप्फुल्लण घण-पूरु । सुमरहु जिणवरु अनु सुगुरु मोह-महातम-सूरु ॥४ इक्कु देवु गुरु इक्कु जसु सो नरु सुक्खह खाणि । दो-पक्खा-संसत्तयह चंदु जेम कल-हाणि ॥५ जलनिहि-पडि[य]उ रयणु जिम कुल-बल-जाइ-समिधु । पाविवि दुलहउ मणुय-भवु अच्छि म विसयहि गिधु ॥६ तस-थावर-जीवह उवरि करि करुणा सुपवित्त । अलिय-वयणु दोसह भवणु परिहरि सच्चणुरत्त ॥७ परिहरि परधण-हरण-मइ सव्वाणत्थह खाणि । बंभचेरु निम्मलु धरहु निवसउ सासय-ठाणि ॥८ मुच्छा परिहरि मणि धरहु सव्व-वत्थु-परिमाणु । अभय-दाणु सत्तु भव(?)जियह कुणहु दिसा मम(?,माणु ॥९ इंदिय-पसरु निवारि करि भोगुवभोगह बंधु । दुह-कारणु परिहरि सयलु णत्थ-दंड-पडिबंधु ॥१० पालहु चंडविडंस जिम सामाइउ अकलंकु । देसावगासिउ वउ धरहु धम्म-सारु निस्संकु ॥११ कम्म-वाहिउ सहु लियहु पोसह पव्व-दिणेसु । पालिउ अतिहि-सँविभाग-वउ(?) जम्मह फल माणेसु ॥१२ बारह वय अंगीकरहु तासु मूलु संमत्तु । अरिहु देवु निग्गंथु गुरु धम्म सु जिण-पण्णत्तु ॥१३ मूल के भ्रष्ट पाठः ५. ३. संवतयह. ५. ३. उभयणु दो. १०. २. भोग ११.४ धम्मु. Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003831
Book TitlePrachin Gurjar Kavya Sanchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Agarchand Nahta
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1975
Total Pages186
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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