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धर्मचच्चरी
कम्मबंधु-कारणु चयहु कुगइ-हेउ मिच्छत्तु । कुगुरु-कुदेव-कुधम्म-मइ तसु सरूवु इइ वुत्तु ॥१४ कत्थूरी कप्पूर वर कुंकुम चंदण एहि । चच्चहु जिणवरु विषिह-परि पाविउ बहु-पुन्नेहि ॥१५ चंपय पाडल-केवडिय- जाइ-कुंद-पमुहेहि । पूयहु फुल्लहि तित्थयरु गंध-लुद्ध-भिम रहि ॥१६ सुह-गुरु-चरणिहि वंदणउ बारह वत्तह जुत्तु । कन्ह-नराहिव-जिम दियहु विरयहु गत्त पवित्तु ॥१७ छव्विहु आवस्सउ करहु उभय-कालु गुरु-भावि । धम्मु चउब्विहु अणुसरउ मुच्चहु जिम भव-पावि ॥१८ अमिय-सरसु सुहगुरु-वयणु कन्नंजलिहि पिबेहु । एवमाइ धम्मुज्जमिहि नर-जम्मह फलु लेहु ॥१९ जे आराहइ गुरु-चलण जिणवर-धम्मु करिति ।। संसारिय-सुहु अणुभविय सिवपुरि ते विलसंति ॥२०
११. १. बंधु. १५. ३. विविविह. १६. ३. पूअहु. १८. १. अछब्विहुः २ भाविहि. ३ विहु.
पुष्पिका : इति धर्माचच्चरी समाप्ता.
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