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[ तीन ]
प्रतिमस्तक होते हैं । आगमों के रहस्यों को सर्व साधारण जन लाभ उठा सकें उन्हें समझ सकें इस हेतु ज्ञानी पुरुष उसे सरल साहित्य में रचना कर गए हैं।
आगमिक साहित्य में धर्म भिन्न-भिन्न स्वरूप में वर्णन किया गया है जो चार विभागों में विभाजित है । ये अनुयोग के नाम से सर्व विदित है। चार प्रकार के प्रयोग में तत्व की पहिचान द्रव्यानुयोग में सविशेष और विस्तार से है । ये तत्वों का विशाल भण्डार है । तत्वालम्बन से आत्मा शुद्ध मार्ग का धारक बनता है । भक्ति व कृति अन्य जीवों का एवं स्वात्मा का कल्याण करती है। निर्मल बुद्धि से और उद्दात भावना से लिखी गई रचनाएँ आनन्द सागर के हिलोरे मारती है । स्वानन्द की मस्ती से वातावरण परम शुद्ध बनता है। उन महापुरुषों के उपकार को याद करते हुए अपना मस्तक सहज भाव से उनके समक्ष झुक जाता है ।
गुजराती साहित्य में अनेक प्राध्यात्मिक पुरुष हुए जिन्होंने स्व के प्रकाश में पथिक को मोक्ष मार्ग बताया है । इस आनन्द को व्यक्त करते हुए उन्हें आनन्द की अनुभूति होती है । मन को तन्मय करने के लिए काव्य कृति सविशेष उपयोगी है । - काव्य के रसास्वादन के साथ ज्ञान की गंगोतरी की तेजस्विता प्रत्यक्ष होती है । विद्वान और ज्ञानी के काव्य समाज की महान धरोहर होती है ।
प्रस्तुत ग्रन्थ एक महान् योगी द्रव्यानुयोग के परम धारक कविवर्य, कर्म साहित्य के पण्डित श्रीमद् देवचन्द्रजी महाराज की परम काव्य सरिता का सागर है। इसमें कुछ पहले प्रकट हो चुके हैं और कुछ नए प्रकट हो रहे हैं । तत्कालीन महापुरुषों ने उनकी कृतियों की भूरि भूरि प्रशंसा की है । प्रागमिक ज्ञान सागर के कुछ अंश काव्य रूप में गुन्थनकर के एक पुष्प हार भव्य जीवों को अर्पण किया है। उसकी सुवास निर्दोषता और तेजस्विता आत्मा का द्योतक है ।..
साहित्य वृत्ति में विहरमान जिन स्तवन, वर्त्तमान जिन स्तवन, प्रतीत जिनस्तवन, आध्यात्मिक गीता, ग्रागमसार, ज्ञान मंजरी टीका; कर्म साहित्य आदि
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