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________________ [चौसठ] प्राप्त करने की सदशिक्षा दी है । दोनों में साधुजीवन के सुखों का अनुभव गम्य वर्णन किया है। उसमें से कुछ उद्गार ये हैं। जगत् मे सदा सुखी मुनिराज ।।टेर।। 'पर विभाव परिणति के त्यागी, जागे आत्म समाज, निजगुण अनुभव के उपयोगी, जोगी ध्यान जहाज । निर्भय, निर्मल, चित्त निराकुल, विलगे ध्यान अभ्यास, देहादिक ममता सवि वारी, विचरे सदा उदास ।। हेय त्यागथी ग्रहण स्वधर्म नो रे, करे भोगवे साध्या, स्वस्वभावरसिया ते अनुभवे रे, निजसुख अव्याबाध । निस्पृह, निर्भय, निर्मम, निरमलारे, करता निज साम्राज्य, देवचन्द्र आणाये विचरता रे, नमिये ते मुनिराज ॥ अन्य-उपलब्धकृतियाँ (१) एकवीशप्रकारी पूजा (२) अष्ट प्रकारो पूजा (इसका खोपज्ञ टब्बा भी है) (३) सहस्त्रकूट जिनस्तवन (४) प्रानन्दघन चौबीसी में 'ध्र वपदगमी हो स्वामी माहरा' से प्रारंभ होनेवाला पार्श्वनाथ प्रभु का स्तवन और (५) वीर जिणेसर चरणे लागु यह महावीर प्रभु का स्तवन ये दोनों ही श्रीमद् के ही बनाये हुए हैं। योगीराज ज्ञानसारजीकृत आनंदधन चौबीसी के बालावबोध से यह स्पष्ट है।' इनके अति रिक्त प्रस्तुत संग्रह' की (......) रचनायें हैं। इस प्रकार श्रीमद् ने श्रुतज्ञान का खूब सेवा की है । कुछ आपकी अमुद्रित कृतियां भी यत्र तत्र भंडारों में उपलब्ध होती हैं। १. देखो नाहटाजीकृत ज्ञानसार ग्रन्थावली का जी० पृ० ६६ से १०२. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003830
Book TitleShrimad Devchand Padya Piyush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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