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[ पेंसठ ] अमुद्रित कृतियाँ
(१) अध्यात्मप्रबोध (हितविजय पं०, घाणेराव), इसकी नकल नाहटा लाइब्रेरी, बीकानेर में है) (२) अध्यात्मशान्तरस वर्णन (३) उदय-स्वामित्त्व पंचाशिका (खरतरगच्छ ज्ञान भंडार, जयपुर) (४) तत्त्वावबोध ('विचारसार' में इसका उल्लेख है) (५) दण्डक बालावबोध (नाहटा भंडार, बीकानेर) (६) कुंभस्थापना भाषा (खरतरगच्छ ज्ञानभंडार, जयपुर) (७) सप्तस्मरण टब्बा (८) देशनासार (8) स्फुट प्रश्नोत्तर ।
इनके अतिरिक्त श्रीमद् की अन्य कोई कृति किसी को कहीं उपलब्ध हुई हो तो अवश्य सूचित करें। भीमद् की कृतियों पर अन्यकृत बालावबोध विवेचन आदि
श्रीमद् की अध्यात्मगीता पर सर्वाधिक कार्य हुआ। इस पर एक भाषा टीका (बालावबोध) श्रीमद् आनंदघनजी की चौबीसी और पदों पर विवेचन लिखने वाले मस्तयोगी ज्ञानसारजी ने सं० १८८० की आषाढ़ सुदी १३ को बीकानेर में बनाई थी। ज्ञानसारजी अध्यात्म-मर्मज्ञ विद्वान् सन्त थे। बालावबोध के प्रारम्भ और अन्त में इस रचना का महत्त्व और गुण वर्णन करते हुए उन्होंने लिखा है
खरतर प्राचारज गणे दीपचन्द तसुसीस। देवचन्द्र चन्द्रोदयी संवेगिक तनु सीस ॥ जिन वचनामृत पानकर रचना रची रसाल । क्यों न होंहि जल सींचनां, हरी तरून की डाल ।। अध्यातम-गीताकरी करी विवरण नहीं कीन । आग्रह ते विवरण करू, पं मति तें अति छीन ॥ आशय कवि को अति कठिन, अति गंभीर उदार । वज्र उदधि सुरमणि रमणि, उपमेयोपम धार ।।
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