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________________ [ उन्तीस ] मवानगर में नया काम :-- संवत् १७६६-६७ में आप नवानगर बिराजे । यहाँ पर आपने प्राकृत में 'विचारसार' एव 'ज्ञानसार' पर 'ज्ञानमंजरी' टीका लिखी। इसके अलावा नवानगर में धर्म प्रभावना का नया काम यह किया कि-स्थानकवासियों के प्रभाव से वहाँ के लोगों की मूर्ति पूजा के प्रति एकदम अश्रद्धा हो गई थी। फलत: मन्दिरों और मूर्तियों की हालत बड़ी खराब थी। घोर आशातना हो रही थी। यह देखकर सत्यप्रेमी श्रीमद् को बड़ा दुख हुआ । उन्होंसे पागम और युक्तियों के द्वारा स्थानकवासियों के समक्ष मूर्तिपूजा की सत्यता सिद्ध की। लोगों की मूर्ति-पूजा में श्रद्धा स्थिर हुई । और वहाँ के मन्दिरों में पुनः दर्शन पूजन आदि शुरू हुए। यहाँ परछरी के ठाकुर साहब आपके परिचय में आए और उनको प्रतिबोध देकर आपने धर्मप्रेमी बनाया। तत्पश्चात् १७६८ से १८०१ तक आप नवानगर और पालीताणा के बीच विचरण करते रहे। १८०२-३ में आप नवानगर के पास स्थित 'राणाबाव' में विराजे । अन्य लोगों से साथ गाँव का ठाकुर भी आपके प्रवचन में आने लगा। आपके त्याग का ही प्रभाव समझो कि आपके सत्संग से ठाकुर का सारा जीवन हो बदल गया। दुर्गुणों की दुर्गन्ध से भरापूरा जीवन संयम की सुगन्ध से महक उठा और वे आध्यात्मिक जीवन जीने लगे। संवत् १८०४ में आप भावनगर पधारे थे और वहाँ के महाराजा भावसिंहजी भी इसी तरह आप से प्रभावित हो मापके परमभक्त बन गये थे। १८०५-६ में पाप लींबड़ी बिराजे । इस बीच लींबड़ी-चूड़ा एवं ध्रांगध्रा में मापके सान्निध्य में बड़े महोत्सव पूर्वक जिनबिंबों की प्रतिष्ठा हुई थी।' लोंबड़ी प्रतिष्ठा के विषय में श्रीमद् स्वयं स्तवन में कहते हैं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003830
Book TitleShrimad Devchand Padya Piyush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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